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मंडराने लगे हैं राजनीतिक उथल पुथल के बादल

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सिद्धांतविहीन और अवसरवादी राजनीति के आकाश पर एक बार फिर घने काले बादल मंडराते दिखाई देने लगे हैं। इन काले बादलों के उथल पुथल की छाया फिलहाल मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पड़ती दिखाई दे रही है। संभव है 2023 के अंत तक प्रस्तावित मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा के चुनाव आते-आते इस राजनीतिक उथल-पुथल का दायरा और भी बड़ा हो जाए।

लंबे समय तक सत्ता से दूर रहने की छटपटाहट सहन न कर पाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मार्च 2020 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और अपने समर्थक 22 कांग्रेस विधायकों के साथ पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे।

लोकतंत्र के साथ किए गए इस खिलवाड़ के चलते कमलनाथ सरकार गिर गई थी और बीजेपी की सरकार सत्ता में आ गई थी। लोकतंत्र विरोधी इस सारे खेल के जिम्मेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से की गई बगावत थी। जब कि कांग्रेस द्वारा उसी दौरान सिंधिया व प्रियंका गांधी को सामूहिक रूप से उत्तर प्रदेश का पार्टी महासचिव इंचार्ज बनाया गया था। सत्ता की भूख ने सिंधिया को पार्टी से गद्दारी करने के लिए इतना मजबूर किया कि उन्होंने स्वार्थ के चलते राज्य की निर्वाचित कमलनाथ सरकार गिराने में भी संकोच नहीं किया।

भाजपा में जाकर राज्यसभा की सदस्यता और मंत्री पद हासिल करने के बाद अब वही ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश के भाजपाइयों की नजरों में कांटे की तरह चुभने लगे हैं। सिंधिया व उनके समर्थक राज्य के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और कई तरह के आरोप लगाए जाने लगे हैं। बेशक पहले भी सिंधिया राजपरिवार के सदस्यों पर घमंडी, अहंकारी होने और लोगों से न मिलने जैसे आरोप तो जरूर लगते रहे हैं परंतु उन पर भ्रष्टाचार के आरोप कभी नहीं लगे।

अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप स्वयं भाजपाइयों द्वारा तो लगाए ही जा रहे हैं, बल्कि अब तो यहां तक भी कहा जा रहा है कि इस भ्रष्टाचार का कमीशन ज्योतिरादित्य सिंधिया तक भी जा रहा है। यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया को इन दिनों जिन अपमानजनक हालात का सामना भाजपा में करना पड़ रहा है, उसकी शायद उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।

कहा जा रहा है कि सिंधिया राजघराने के किसी भी सदस्य को अपनी ही पार्टी में इतना बड़ा विरोध आज तक कभी नहीं सहना पड़ा। और हद तो यह है कि गुना शिवपुरी लोकसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव में हराने वाले भाजपा सांसद कृष्ण पाल सिंह यादव ने तो सिंधिया की ओर इशारा करते हुए यहां तक कह दिया है कि ‘कुछ ऐसे मूर्ख लोग भी होते हैं जो अपने आप को बुद्धिजीवी समझते हैं।

उन्होंने सिंधिया को कमजोर नेता बताते हुए कहा है कि यदि उनमें हिम्मत है तो गुना शिवपुरी सीट से कांग्रेस के टिकट पर किसी भी भाजपा नेता के खिलाफ चुनाव लड़कर देख लें’। अपमान की इस इंतहा को देखते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया का अगला कदम क्या हो सकता है, घर वापसी या अपमान के घूँट पीते रहना, जल्द ही इसका पटाक्षेप हो सकता है।

इसी तरह राजस्थान में सचिन पायलट, अशोक गहलोत जैसे कांग्रेस के दिग्गज रणनीतिकार के लिए आए दिन समस्या खड़ी कर रहे हैं। निश्चित रूप से जिस कांग्रेस को संकट से उबारने के लिए राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा जैसा कठिन अभियान चलकर पार्टी में पुन: जान फूंकी और हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में पार्टी की सत्ता में वापसी कराई, वर्तमान में सचिन पॉयलट उसी पार्टी के लिए एक समस्या बने हुए हैं। गत दिनों उन्होंने अपनी ही सरकार के विरुद्ध जन संघर्ष यात्रा निकाली और गहलोत पर जोरदार हमला बोला। हालांकि पायलट ने यह जरूर कहा कि उनकी जन संघर्ष यात्रा किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध है।

परन्तु पार्टी और गहलोत सरकार उनकी इस सत्ता विरोधी यात्रा से असहज जरूर हुई। ऐसे हालात में पार्टी ने फिलहाल अपनी रस्सी ढीली छोड़ी हुई है, तो उधर सचिन भी संभवत: अपनी राजनीतिक ‘शहादत’ की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

गहलोत और पायलट के बीच समय-समय पर चलने वाले तीखे शब्द बाण भी यह इशारा जरूर कर रहे हैं कि यदि शीघ्र सब कुछ ठीक नहीं हुआ तो राजस्थान में भी कोई बड़ी राजनीतिक उथल पुथल हो सकती है। हालांकि, ताजा खबरों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दे सकती है। इसी समझौता फार्मूला के तहत पायलट के विधायकों को मंत्रिमंडल में पहले से अधिक संख्या देने व विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनने पर दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की भी खबर है।

उधर उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस के नेता प्रमोद कृष्णन जोकि पार्टी प्रवक्ता भी रह चुके हैं तथा अत्यंत मुखर होकर पार्टी की पैरवी किया करते थे, इन दिनों उनके भी सुर कुछ बदले हुए हैं। वे भी सचिन पायलट के करीबी तो हैं ही, साथ-साथ पार्टी में राहुल गांधी के बजाय प्रियंका गांधी को आगे लाने की वकालत करते सुने जा चुके हैं।

कांग्रेस ने उन्हें पार्टी प्रवक्ता पद से भी हटा दिया है। अब वे कई जगहों पर भाजपा समर्थक बयान देते सुने जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दल जहाँ नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने के पक्ष में थे, वहीं वे भाजपा के सुर से अपना सुर मिलाते हुए प्रधानमंत्री से ही संसद भवन का उद्घाटन कराने की वकालत करते सुने जा रहे थे। इन दिनों उनके हाव भाव भी काफी बदले हुए हैं।

देखना होगा कि भाजपा प्रवक्ता टीवी डिबेट के दौरान जिन प्रमोद कृष्णन को ‘ठग संत’ तक कहकर संबोधित कर चुके हैं, वह अब भाजपा की नीतियों की प्रशंसा से क्या हासिल कर सकेंगे। कुल मिलाकर निकट भविष्य में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव व अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के पूर्व देश की राजनीति के क्षितिज पर संभावित उथल पुथल के काले बादल पूरे जोर शोर से मंडराने लगे हैं।

Writer :-

तनवीर जाफरी
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