जम्मू-कश्मीर में 18 जुलाई 1848 में जन्मे महाराजा प्रताप जामवाल वंश के मुखिया थे। उनके पिता महाराजा रणबीर सिंह अपने छोटे बेटे अमर सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर स्वायत्त राज्य होने के बावजूद वहां एक विशेष ब्रिटिश अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी। ब्रिटिश अधिकारी ने अमर सिंह की जगह प्रताप सिंह को राज्य का उत्तराधिकारी माना। बाद में पैदा हुई परिस्थितियों की वजह से प्रताप सिंह ब्रिटिश हुकूमत को खलने लगे, तो उन्होंने प्रताप सिंह पर कई तरह की बंदिशें लगाईं। प्रताप सिंह ने किसानों से ली जाने वाली बेगारी की प्रथा को समाप्त किया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सड़कें खूब बनवाई थीं। उन्हीं के भतीजे हरि सिंह ने 1925 में शासन संभाला था। एक बार की बात है, महाराजा प्रताप सिंह कहीं से आ रहे थे। उन्होंने देखा कि एक तालाब के किनारे एक युवक को लेटा हुआ देखा। वह उसके पास गए, तो पाया कि वह बुखार से तप रहा है। उन्होंने उसका पता पूछा तो उसने बताया कि वह मेहतरानी लक्ष्मी का दामाद है और वह अपनी पत्नी को लिवाने जम्मू जा रहा था। महाराजा ने उसी दशा देखी, तो उसको गोद में उठाकर अपने घोड़े पर बिठाया और घोड़े की लगाम पकड़कर पैदल चलने लगे। राज्य में पहुंचते ही यह खबर चारों ओर फैल गई। लक्ष्मी मेहतरानी ने यह सुना और अपने जंवाई को महाराजा के घोड़े पर बैठा देखा, तो वह डर गई और महाराजा के कदमों पर गिरकर क्षमा मांगने लगी। महाराजा ने उसे उठाते हुए कहा कि एक बीमार आदमी की देखभाल करना इंसान होने के नाते मेरा धर्म है। फिर मेरे राज्य में रहने वाली लक्ष्मी का दामाद मेरा भी तो दामाद हुआ। यह सारे लोग श्रद्धा से महाराजा के आगे झुक गए।
अशोक मिश्र