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हरियाणा में महिलाओं और बच्चियों में एनीमिया की समस्या चिंताजनक

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संजय मग्गू
एनीमिया यानी शरीर में रक्त की कमी को लोग प्राय: गंभीरता से नहीं लेते हैं। महिलाएं इस मामले में तब चितिंत होती हैं, जब वे गर्भवती होती हैं। बाकी सामान्य दिनों में वह इस बात पर ध्यान ही नहीं देती हैं कि उनके शरीर में रक्त कितना है? ऐसी सोच रखने वाली महिलाओं की संख्या उन महिलाओं से ज्यादा है, जो अपने स्वास्थ्य के बारे में सतर्क रहती हैं। हरियाणा उन राज्यों की श्रेणी में आता है, जहां एनीमिया एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। प्रदेश की लगभग 56.5 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, पांच साल से कम उम्र के 70.4 प्रतिशत बच्चे, 62.3 प्रतिशत किशोरियों और 60.6 प्रतिशत प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना के तहत महीने में हर जिले में स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं, जहां गर्भवती महिलाओं की एनीमिया की जांच की जाती है और रक्त की कमी पाई जाने पर उनको दवाइयां भी दी जाती हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन शिविरों तक जाने में कितनी गर्भवती महिलाएं रुचि लेती हैं? वैसे भी प्रदेश में ज्यादातर महिलाएं, बच्चे और गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार पाई जाती हैं। मध्यम और निम्न आय वर्ग की महिलाएं, बच्चे और गर्भवती महिलाएं एनीमिया की ज्यादा शिकार होती हैं क्योंकि इन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है। गरीबी और महंगाई की वजह से महिलाएं और बच्चे पौष्टिक भोजन कर पाने में नाकाम रहते हैं जिसकी वजह से वे रक्त की कमी के शिकार हो जाते हैं। प्रदेश के लोगों को समझना चाहिए कि शरीर में रक्त की कमी के मामले को नजरअंदाज करने पर उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। गर्भवती महिलाओं में रक्त की कमी होने पर शिशु को संपूर्ण पोषण नहीं मिल पाता है जिसकी वजह से शिशु का विकास बाधित हो सकता है। इस स्थिति में शिशु का वजन भी कम हो सकता है। ऐसा होने पर शिशु के लीवर और प्लीहा का आकार बढ़ जाने की आशंका रहती है। ऐसे शिशु को जन्म के तुरंत बाद कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे बच्चे के अंगों में असामान्य तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इससे बच्चे की मौत होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वहीं मां बनने वाली महिला को भी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। प्रसव के दौरान अधिक रक्तस्राव होने से थकान और अवसाद की समस्या हो सकती है। चूंकि गर्भस्थ शिशु अपने पोषण के लिए अपनी मां पर ही निर्भर होता है। ऐसी स्थिति में यदि गर्भवती महिला पहले से ही एनीमिया की शिकार हो, तो समस्या और बढ़ जाती है। गर्भ में विकसित होने वाला शिशु पर्याप्त आयरन, विटामिन बी-12 और फोलिक एसिड वगैरह अपनी मां से ही ग्रहण करता है, तो ऐसी स्थिति में समस्या विकराल हो जाती है।

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