बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
परचुरे शास्त्री स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे। वह संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान और कवि थे। उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर कई बार अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था। इसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वह असहयोग आंदोलन में भाग लेने की वजह से महात्मा गांधी के साथ गिरफ्तार किए गए और उन्हें पुणे के यरवदा जेल में रखा गया। दुर्भाग्य से उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। जेल में भी उन्हें अलग कोठरी में रखा गया। महात्मा गांधी ने उनसे मिलने की इजाजत जेल अधिकारियों से मांगी, लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिली। परचुरे शास्त्री गांधी जी के मित्र भी बताए जाते हैं। कहते हैं कि जब उनका रोग काफी बढ़ गया तो वह सेवाग्राम आए। सेवाग्राम में महात्मा गांधी रहते थे। महात्मा गांधी लगातार लोगों से सेवाग्राम में घिरे रहते थे। सेवाग्राम में बनी कुटिया में लोग रहते थे। एक दिन की बात है। महात्मा गांधी सुबह टहलकर जब वापस लौटे तो देखा कि उनकी कुटिया के दरवाजे पर एक कृशकाय व्यक्ति जमीन पर लेटा हुआ है। गांधी जी उसको देखकर चौंक गए। उस व्यक्ति के शरीर से मवाद बह रहा था। महात्मा गांधी ने तुरंत पहचान लिया कि यह परचुरे शास्त्री हैं। शास्त्री ने बड़ी दीनता से हाथ जोड़ते हुए कहा कि मैं आपके दरवाजे पर शांति से मरने आया हूं। यह सुनकर गांधी जी द्रवित हो गए। उन्होंने पल भर सोचा कि इन्हें कहां रखूं। कुटिया में लोग रह रहे थे। अंतत: गांधी जी ने परचुरे को अपने बगल में खाली पड़े गोदाम में ले गए। उन्होंने उनका मवाद साफ किया, दवा लगाई। कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति भी जताई, लेकिन गांधी जी नहीं माने। उन्होंने कुछ दिनों तक शास्त्री जी की मन लगाकर सेवा की, लेकिन अफसोस की बात यह है कि 5 सितंबर 1945 को परचुरे शास्त्री का निधन हो गया। उनकी याद में वह कुटिया सेवाग्राम में आज भी है।
कुष्ठ रोगी की सेवा में महात्मा गांधी
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