संजय मग्गू
यह तो निर्विवादित सत्य है कि सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ था। प्राचीनकाल में जितने भी शहर बसाए गए, वे सभी नदियों के किनारे बसाए गए। जब मानव समाज का विकास हुआ, तो शहरों का उन जगहों पर विकास हुआ, जहां पानी की उपलब्धता सहज थी। समाज का जब और थोड़ा विकास हुआ, तो नहरें निकालकर उन जगहों पर भी पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई, जहां पानी सहज रूप से उपलब्ध नहीं था। जल का महत्व हमारे पुरखे समझते थे। यही वजह है कि उन्होंने अपने जीवन में नदियों, तालाबों, पेड़-पौधों और प्रकृति को महत्व दिया। नदियों को मां का संबोधन दिया, देवी कहकर पूजा आराधना की ताकि भावी पीढ़ी इन नदियों की महत्ता को समझे और इनकी सुरक्षा करे। गंगा, यमुना, सरस्वती, कोशी जैसी न जाने कितनी नदियां हमारे देश में बहती हैं। आज हालत यह है कि कभी सदानीरा रहने वाली नदियां आज नाले के रूप में प्रवाहित हो रही हैं। लगभग सभी नदियां प्रदूषित हो गई हैं। सरस्वती नदी तो हमारे देश में विलुप्त ही हो गई। उसके विलुप्त होने का कारण क्या थे? इसके बारे में पर्यावरणविद और भूवैज्ञानिक खोज कर रहे हैं। सरस्वती नदी के विलुप्त होने का कारण जरूर हमारे पूर्वजों की कोई भूल रही होगी, तभी तो सदानीरा सरस्वती विलुप्त हो गई। हरियाणा की वर्तमान सरकार अब प्रदेश में विलुप्त हो गई सरस्वती नदी को फिर से धरा पर लाने का प्रयास कर रही है। वैसे तो विलुप्त सरस्वती नदी को एक बार फिर पहले की तरह धरती पर लाने और सदानीरा बनाने का प्रयास 1986 से ही शुरू हो गया था। यह कार्य इतना सरल भी नहीं है। यही वजह है कि इतने साल बीतने के बाद भी अभी पूरी तरह प्रदेश की धरती पर सरस्वती को नहीं लाया जा सका है। दस साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की स्थापना की गई थी। बोर्ड ने पिछले दस साल में काफी सराहनीय कार्य किया है। प्राचीन सरस्वती जिन रास्तों और शहरों से होकर बहती थी, उन जगहों की खोज करना श्रमसाध्य कार्य था। सरकार ने सरस्वती की जलधारा वाली जमीनों पर बने मकान, दुकान और खेत आदि का पता लगाया और उन जमीनों को वापस हासिल किया। इसके लिए कुछ लोगों ने अपनी जमीन दान में दे दी, तो बाकी लोगों को सरकारी रेट पर पैसे दिए गए। सरस्वती नदी की जलधारा को वापस लाने की योजना में 80 प्रतिशत काम हो चुका है। बाकी बीस प्रतिशत का बड़ी तेजी से चल रहा है। अब उम्मीद हो चली है कि कुछ ही साल में पवित्र सरस्वती नदी को हम प्रदेश की धरती पर बहती हुई देख सकेंगे। सरस्वती नदी पहले की तरह हरियाणा की धरती को पावन करती हुई प्रवाहित होगी।
हरियाणा की धरती को पावन करती हुई फिर प्रवाहित होगी सरस्वती नदी
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