कैलाश शर्मा
हर नवविवाहित जोड़े की यह मनोकामना होती है कि उसका वंश चलाने के लिए एक राज दुलारा उसके आंगन में आए। जो बड़ा होकर उसके जीवन का सहारा बने और उसके मान सम्मान की भी रक्षा करे। इस राज दुलारे को पाने के लिए वे काफी जप-तप, पूजा-पाठ करते हैं। ईश्वर! उनकी पुकार सुनता भी है। अपने इस राज दुलारे को बड़ा करने में, पढ़ाई-लिखाई कराने में, रोजगार दिलाने में वे कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। कष्ट उठाकर भी उसके जीवन को स्वस्थ, मंगलमय और उज्जवल बनाते हैं। वे माता-पिता बहुत ही भाग्यशाली होते हैं जिनके ये राज दुलारे उनकी आकांक्षाओं पर खरे उतरते हैं, उनके मान-सम्मान और प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं, लेकिन कई राज दुलारे ऐसे भी होते हैं जो अपने शर्मनाक कार्यों से अपना तो जीवन खराब करते ही हैं, अपने मां बाप को भी कष्ट पहुंचाते हैं।
अभिभावक अपने तौर पर ये सुनिश्चित करते हैं कि वे अपने बच्चों को वो सब कुछ दे सकें जो किसी कारणवश उनके माता-पिता उन्हें न दे सकें। वे अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सब कुछ करते हैं। ऐसा करने के बाद भी ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के स्वभाव और उनके दैनिक आचरण व सोच से नाखुश ही नजर आते हैं। बच्चों का मन बहुत ही कोमल होता है। छोटी-सी बात को भी दिल से लगा लेते हैं। ऐसे में पेरेंट्स उसे खुश रखने के चक्कर में उसकी सारी बातें मानते चले जाते हैं। ऐसे में बच्चा इतना जिद्दी हो जाता है कि उसकी किसी भी बात को ना मानने पर वह पर गुस्सा दिखाने लगता है। आज से पहले कई भाई-बहन होते थे। एक साथ खेलते थे, एक दूसरे को समझते थे, एक दूसरे की गलती सुधारते थे लेकिन आज कोई एक से ज्यादा बच्चा करना ही नहीं चाहता है। इसका कारण बढ़ती महंगाई, सीमित साधन और कुटुंब परिवार का बिखरना, उनका एकल होना है।
यही वजह है कि घर में इकलौता होने की वजह से बच्चे को लाड़-दुलार ज्यादा मिलता है, जिससे बच्चा जिद्दी हो जाता है और अपनी हर बात मनवाना चाहता है। एकल परिवार में माता-पिता दोनों के कामकाजी होने से बच्चे पर कम ध्यान देना भी उनके बिगड़ने की आशंका बढ़ा देती है। अब प्रश्न यह है कि बच्चों को बिगड़ने से कैसे रोका जाए? बच्चे वही सीखते हैं जो आसपास देखते हैं। इसलिए बच्चों के साथ संतुलित व्यवहार करने की जरूरत होती हैं। माता-पिता अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार बनाकर उनको समाज में हिस्सेदारी और उचित व्यवहार को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। माता-पिता बच्चों के पहले शिक्षक माने जाते हैं। माता-पिता की प्रतिक्रिया बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होती है। पेरेंट्स जैसी प्रतिक्रिया देंगे बच्चे भी वही सीखेंगे।
बच्चे के बेहतर विकास के लिए जरूरी है कि घर का माहौल शांतिपूर्ण होना चाहिए। जितना संभव हो माता-पिता को बच्चे के सामने ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए या फिर झगड़ना नहीं चाहिए। बच्चों के प्रति माता-पिता का अनुशासित व्यवहार उनमें आत्म नियंत्रण, दूसरों की देखभाल और बुरे व्यवहार पर लगाम लगाने की आदत को विकसित करने में मदद करता हैं। ड्रग्स, शराब, धूम्रपान और तंबाकू आदि गलत आदतों के बारे में बच्चे से खुलकर बात करें। उसे बताएं कि इन्हें लेने से किस प्रकार की शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं। साथ ही उनके साथ यौन सबंध के बारे में भी खुलकर बात करें, ताकि वो किस तरह का गलत कदम न उठा सकें।
अपने बच्चे के दोस्तों से मिलें और जानें कि उसके दोस्त कैसे हैं। अगर लगे कि दोस्तों की संगत अच्छी नहीं है तो इस बारे में बच्चे से बात करें। उसे समझाएं कि अच्छे दोस्तों का जीवन में होना कितना जरूरी है। बच्चे को अपने निर्णय खुद लेने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर वो फैसला लेने में कुछ भी गलती करें, तो उसे प्यार से समझाएं। इससे उसमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा और सही-गलत की पहचान करने में मदद मिलेगी। अपने बच्चे की राय का सम्मान करें। घर के महत्वपूर्ण विषयों पर राय लें और उसके विचारों और भावनाओं को सम्मान दें। ऐसा करने से उसे लगेगा कि आप उसकी बात सुन रहे हैं, जिससे उसे जिम्मेदारी का अहसास होगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
बच्चों से करें अनुशासित और दोस्ताना व्यवहार
- Advertisement -
- Advertisement -
RELATED ARTICLES