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प्रदूषण के चलते हरियाणा में बढ़ रही फेफड़े से जुड़ी बीमारियां

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संजय मग्गू
हरियाणा में प्रदूषण के चलते फेफड़े से जुड़े रोगों के मरीजों की संख्या दिनोंदि बढ़ रही है। टीबी, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के रोगी प्रदेश के अस्पतालों में काफी पहुंच रहे हैं। प्रदूषण के चलते फेफड़ों और रक्त नलिकाओं में सूजन आ जाती है जिसकी वजह से सांस के रोगी  बढ़ रहे हैं। यह हालत सिर्फ हरियाणा में ही हो, ऐसी बात नहीं है। इससे प्रभावित तो पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे कई राज्य हैं। प्रदूषण को लेकर प्रदेश की सैनी सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक हर संभव प्रयास कर रही है। सुप्रीमकोर्ट भी बार-बार राज्यों को चेतावनी दे रहा है, फटकार रहा है, लेकिन समस्या का निदान नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, समस्या का कारण सामूहिक है, तो इसका हल भी सामूहिक रूप से होना चाहिए। कोई सरकार हर घर, हर गली और हर सड़क पर पहरा नहीं बिठा सकती है। यह तो प्रदेश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी सरकार और अदालत के फैसले स्वीकार करे और उसके मुताबिक आचरण करे। यही नहीं हो रहा है। प्रदेश सरकार बार-बार अपील कर रही है, न मानने पर मजबूर होकर जुर्माना कर रही है, पोर्टल पर रेड एंट्री कर रही है। इसके अलावा कोई भी सरकार और क्या कर सकती है? प्रदूषण का कारण सिर्फ दस या इससे कम प्रतिशत लोग हैं जिनमें पराली जलाने वाले किसान, सड़कों पर कूड़ा जलाने वाले लोग या स्थानीय निकाय कर्मचारी, भवन निर्माण करने वाले लोग शामिल हैं। लेकिन इसका खामियाजा पूरे प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश के अस्पताल इन दिनों निमोेनिया, खांसी, कैंसर, हृदय रोगियों से भरे पड़े हैं। प्रदूषण के चलते फेफड़े सूज रहे हैं। बच्चे, बूढ़े ही नहीं, युवाओं की रक्त नलिकाओं में सूजन आ रही है जिसकी वजह से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ रहा है। गर्भवती महिलाएं प्रदूषण का प्रकोप कुछ ज्यादा ही झेल रही हैं। गर्भस्थ शिशुओं को भी कई तरह की बीमारियों और विकारों का सामना करना पड़ रहा है। चेस्ट रोग विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार प्रदूषण के चलते गर्भस्थ शिशु का शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। उसका मस्तिष्क कमजोर हो सकता है। उनकी स्मरण शक्ति प्रभावित हो सकती है। प्रदूषण के चलते चर्म रोग इन दिनों बढ़ जाते हैं। कई बार यही चर्म रोग कैंसर का रूप धारण कर लेते हैं। प्रदूषण भयावह है। इससे निपटने में हर व्यक्ति को सक्रिय भागीदारी निभानी होगी। जब प्रदेश सरकार पराली निस्तारण के लिए प्रति एकड़ एक हजार रुपया उपलब्ध करा रही है, तो फिर पराली जलाने का औचित्य क्या है? पराली को खेतों में मिलाने से खेत की उर्वरता बढ़ जाती है, यह साबित हो गया है। हमारे पूर्वज किसान सदियों से यही करते रहे हैं और खेत की उर्वरता बढ़ाते रहे हैं।

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