पति-पत्नी के विश्वास से चलती है गृहस्थी
अशोक मिश्र
माना जाता है कि कबीरदास का जन्म 1398 ईस्वी में काशी में हुआ था। वह आजीवन सबसे सरल भाषा में सरल जीवन जीने और भगवान की पाखंड रहित तरीके से पूजा-अर्चना करने के लिए लोगों को प्रेरित करते रहे। वह समाज की सामाजिक और धार्मिक बुराइयों को दूर करके एक मानव समाज की रचना के हिमायती थे। कहा जाता था कि काशी में जो शरीर त्यागता है, वह सीधे स्वर्ग जाता है। इस भ्रांति को तोड़ने के लिए जीवनभर काशी में रहने वाले कबीरदास मगहर चले गए थे। उन दिनों मगहर के बारे में यह मान्यता थी कि यह मरने वाला सीधे नर्क जाता है। जब उनका देहावसान हुआ, तो उनके शव की जगह कुछ फूल मिले थे जिन्हें उनके हिंदू और मुसलमान शिष्यों ने आपस में बांट लिया था। एक बार की बात है। कबीरदास लोगों को सन्मार्ग पर चलने की सीख दे रहे थे। जब बात खत्म हुई, तो सारे लोग उठकर चले गए। एक युवक वहां बैठा रहा। तब कबीरदास ने उस युवक से परेशानी पूछी तो उसने बताया कि वह अपने पारिवारिक जीवन को लेकर बहुत परेशान है। उसका अपनी पत्नी से रोज लड़ाई होती है। वह समझ नहीं पा रहा कि करे। यह सुनकर कबीरदास ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई-जरा दीपक जला लाओ। उस समय दोपहर का समय था। थोड़ी देर बाद उनकी पत्नी दीपक जला लाई। जब वह अंदर चली गई तो कबीरदास ने एक बार फिर आवाज लगाई-मेहमान के लिए मीठा ले आओ। कुछ देर बाद कबीरदास की पत्नी एक कटोरी में नमकीन ले आई। तब कबीरदास ने युवक को समझाया। जीवन सामन्जस्य और विश्वास से चलता है। मैंने दोपहर में दीप लाने को कहा, तो मेरी पत्नी ने सोचा होगा कि हो कोई काम। जब मैंने मीठा लाने का कहा, तो वह नमकीन ले आई। हो सकता है कि घर में मीठा हो ही नहीं। यह हम दोनों के विश्वास की बात है। गृहस्थी दोनों के विश्वास से चलती है।
अशोक मिश्र