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तमिलनाडु में कितना बदलाव ला पाएंगे थलपति विजय!

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संजय मग्गू
दक्षिण भारत में फिल्म एक्टर और एक्ट्रेस को बहुत महत्व दिया जाता रहा है। इसके सबसे बड़े उदाहरण एमजी रामचंद्रन रहे हैं। एमजी रामचंद्रन राजनीति में आने से पहले अभिनेता थे और ज्यादातर फिल्मों वे भगवान का रोल किया करते थे। सन 1972 में उन्होंने एआईडीएमके की स्थापना की और 1977 से 87 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। प्रसिद्ध लेखिका गौरापंत शिवानी ने अपनी एक किताब में लिखा है कि भारत के इतिहास में सिर्फ दो लोगों महात्मा गांधी और एमजी रामचंद्रन की शव यात्रा में इतनी भीड़ जुटी थी कि जिसकी गणना कर पाना संभव नहीं था। लाखों लोग शवयात्रा में शामिल हुए थे। महात्मा गांधी की मौत पर पूरे देश में कई दिन तक चूल्हा नहीं जला था। यही हाल तमिलनाडु में हुआ था। दक्षिण भारत में फिल्म अभिनेताओं का राजनीति में आना भी कोई नया नहीं है। रविवार को तमिल फिल्मों के अभिनेता थलपति विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कड़गम यानी टीवीके पहली जनसभा हुई। इस जनसभा को लेकर सोशल मीडिया पर भाजपा आईटी सेल के लोग बहुत उत्साहित थे। वह विजय को एक हिंदूवादी नेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे थे। भाजपा को उम्मीद है कि सनातन धर्म विरोधी एमके स्टालिन और उनके पुत्र उदयनिधि स्टालिन को वह तमिलनाडु से उखाड़ फेंकने में भाजपा के सहायक होंगे। लेकिन रविवार को उन्होंने जो विचार व्यक्त किए, उससे भाजपा के लिए गुंजाइश कम ही दिखती है। तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के वक्रवंडी में रविवार को आयोजित सभा में काफी भीड़ जुटी थी। तीन लाख से ऊपर की भीड़ बताई जा रही है। इस भीड़ से पता लग रहा है कि अगले साल में होने वाले विधानसभा चुनाव में विजय की पार्टी कुछ सीटें हासिल कर सकती है। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए परिवारवाद की आलोचना की। यह आलोचना जहां डीएमके की थी, वहीं कांग्रेस भी इसके लपेटे में आ गई। लेकिन उन्होंने बख्शा भाजपा को भी नहीं। उन्होंने केंद्र सरकार की सीधी आलोचना की। हालांकि वह जातीय जनगणना के पक्ष में है, इसकी भी उन्होंने मंच से घोषणा की। शुरुआती दौर में ही उनके जिस तरह के तेवर हैं, वह आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल जैसे ही दिखाई दे रहे हैं। लेकिन वह अपने विचार पर कितना स्थिर रहते हैं, यह आने वाला समय बताएगा। वह अगले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल से गठबंधन भी करना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में सिर्फ एक बात समझ में आती है कि थलपति विजय अपने स्टारडम का उपयोग करके भीड़ तो जुटा सकते हैं, लेकिन किस राह चलेंगे, इसका स्पष्ट पता नहीं लग रहा है। अपने भाषण में उन्होंने सनातन धर्म का विरोध नहीं किया, लेकिन उन्होंने धर्मनिरपेक्ष रहने की भी बात कही है। वह द्रविड़ राष्ट्रवाद और तमिल राष्ट्रवाद दोनों को एक साथ लेकर चलना चाहते हैं। वह पेरियार को भी छोड़ना नहीं चाहते हैं।

संजय मग्गू

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