संजय मग्गू
ज्यादा नहीं दो दशक पहले उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान आदि में किसान अपने फसल अवशेषों को खेत में ही मिला देते थे। फसल चाहे रबी की है या खरीफ की, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। गेहूं और धान के अवशेष पशुओं को खिलाने के काम आते थे। बाकी फसलों के अवशेषों को किसान जुताई करके मिट्टी में ही मिला देते थे। सिर्फ अरहर की जड़ों को किसान कुदाल से खोदकर इकट्ठा कर लेते थे, जो बाद में घरों में जलाने के काम आती थी। हरियाणा में आज भी कुछ किसान धान की पराली को जुताई करके मिट्टी में मिला देते हैं जिससे पराली सड़-गलकर मिट्टी में मिल जाती है। इसको मिट्टी में मिलाने से खेत की उर्वरता बढ़ जाती थी। पराली खेतों में सड़कर कार्बन और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ा देती थी। इसके बाद जरूरत होती थी, तो किसान गोबर की खाद डाल देते थे और भरपूर उत्पादन लेते थे। गोबर या जैविक खाद उन्हें खरीदना भी नहीं पड़ता था क्योंकि खेती बैलों के सहारे होती थी तो हर घर में पर्याप्त मात्रा में पशु हुआ करते थे। लेकिन जैसे-जैसे ट्रैक्टर और कृषि यंत्रों का उपयोग बढ़ता गया, बैल और अन्य पशु अप्रासंगिक होते गए। इसके बावजूद हरियाणा में एक बड़ी संख्या में प्रगतिशील किसान अपने फसल अवशेषों को खेतों में ही मिलाकर भरपूर फसल उत्पादन ले रहे हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान से भी साबित हुआ है कि खेतों में फसल अवशेष मिलने से खेतों की उर्वरता बढ़ जाती है और खाद की जरूरत कम पड़ती है। इस प्रक्रिया से प्रति वर्ष तीन से पांच क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन भी बढ़ जाता है। ऐसे ही प्रगतिशील किसानों की वजह से ही पिछले पांच साल में इस बार सबसे कम पराली जलाई गई है। वैसे हरियाणा में लगभग 28 लाख एकड़ भूमि पर धान की खेती की जाती है। अब तो एक बड़ी संख्या में किसानों ने कृषि पोर्टल पर अपना पंजीकरण कराकर पराली के निस्तारण में रुचि दिखाई है। प्रदेश में 581205 एकड़ खेतों में ही पराली निस्तारण का किसानों ने फैसला किया है। वहीं 462766 एकड़ खेत में पराली का निस्तारण खेत के बाहर किया जाएगा। प्रदेश में जब 1.21 लाख किसान पराली का निस्तारण करने की सोच रहे हैं, तो इसका यही निहितार्थ निकलता है कि प्रदेश के किसान धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं। ऐसे किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए ही सैनी सरकार प्रति एकड़ एक हजार रुपये पराली निस्तारण के लिए प्रदान कर रही है। इसके लिए थोड़ी और मेहनत करनी पड़ेगी और किसानों को पराली निस्तारण के फायदे बताने होंगे। उन्हें समझाना होगा कि पराली निस्तारण करने से न केवल उन्हें आर्थिक लाभ होगा, बल्कि प्रदेश का पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा।
संजय मग्गू