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दधीचि ने मानव कल्याण के लिए प्राण त्यागे

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
ब्राह्मण कुल में उत्पन्न महर्षि दधीचि  वैदिक ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। उन्होंने मानव समाज के कल्याण के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे और अपनी अस्थियां दान कर दी थीं। कहा जाता है कि उनकी अस्थियों से ही पिनाक, गांडीव, सारंग और वज्र बनाया गया था। महर्षि दधीचि अथर्वा और शांति के पुत्र बताए गए हैं। वह शिव के उपासक थे। कहा जाता है कि जब वृत्रासुर को मारने के लिए ईंद्र दधीचि से उनकी अस्थियां मांगने आए, तो उन्होंने कामधेनु गाय से कहा कि वह चाट-चाटकर हड्डियों से मांस को अलग कर दें। दधीचि के बारे में प्रचलित है कि वह प्राणी मात्र के लिए बड़े दयालु थे। वह हर प्राणी के प्राण की रक्षा को तत्पर रहते थे। एक बार जब वह छोटे थे, तो उन्होंने देखा कि एक सांप ने पेड़ पर चढ़कर तोते के बच्चे को पकड़ लिया है। वहां पर भारी भीड़ जमा थी, लेकिन लोग सिर्फदेख ही रहे थे, कोई उस तोते के बच्चे को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा था। दधीचि ने जब यह देखा तो वह झट से पेड़ पर चढ़ने लगे। लोगों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि क्यों एक तोते के बच्चे के लिए अपने प्राण संकट में डाल रहे हो। लोगों की बात को अनसुना करके वह पेड़ पर चढ़े और उन्होंने सांप के मुंह से तोते के बच्चे को छुड़ाकर हवा में उछाल दिया। तोते का बच्चा उड़ गया। सांप जब तक पलटकर उन पर वार करता, वह छलांग लगाकर नीचे आ गए। इससे उन्हें थोड़ी चोट तो आई, लेकिन उन्हें संतोष था कि उन्होंने किसी की जान बचा ली है। लोगों ने उनसे पूछा कि तुम्हें सांप से डर नहीं लगा। उन्होंने कहा कि किसी का जीवन बचाने में डर कैसा? डरना तो गलत काम करने से चाहिए। दधीचि सारा जीवन लोगों के कल्याण के ही काम करते रहे। अंत में उन्होंने मानव कल्याण के लिए अपने प्राण त्याग दिए।

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