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महात्मा बुद्ध के विचारों को ‘आचार’ में लाना भी ज़रूरी

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कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
तनवीर जाफ़री
हमारा देश भारत को देवी-देवताओं,संतों- ऋषियों व फ़क़ीरों की धरती कहा जाता है।  हमारे देश में अलग अलग युग व काल में अनेकानेक देवी देवताओं , महापुरुषों , समाज सुधारक, युग प्रवर्तक व धर्म प्रवर्तकों ने जन्म लिया है।  इन महापुरुषों द्वारा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुये  विश्व को मानवता का सन्देश दिया गया है। ऐसे ही एक महान तपस्वी त्यागी तथा सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुये पूरी मानवता को जीने की एक नई दिशा दिखाने वाले बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान गौतम बुद्ध का नाम भी सर्व प्रमुख है। बौद्ध धर्म कंबोडिया, म्यांमार, भूटान और श्रीलंका में राजकीय धर्म के रूप में अपना स्थान रखता है जबकि थाईलैंड और लाओस में बौद्ध धर्म को विशेष दर्जा हासिल है। चीन, हांगकांग,मकाऊ,जापान,सिंगापुर, ताइवान, वियतनाम,रूस व कलमीकिया में बौद्ध धर्म बहुसंख्य समाज द्वारा अपनाया जाता है जबकि उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, नेपाल और भारत में भी बौद्ध समुदाय की बड़ी आबादी रहती है। ईसा पूर्व 563  में नेपाल के लुम्बिनी में जन्मे महात्मा बुद्ध का पूरे विश्व में अपना प्रभाव छोड़ना और उनके अनुयाइयों का विश्वव्यापी विस्तार इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफ़ी है कि वे जनमानस पर अपनी असाधारण छाप छोड़ने वाले एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने पूरी इंसानियत को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने महत्वपूर्ण भाषणों में यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने सम्बोधन में भी महात्मा बुध की शिक्षाओं का ज़िक्र करते रहे हैं। नवंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री मोदी  ने कहा था कि ‘हम उस देश के वासी हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिये हैं। वे अनेक बार बुद्ध की सत्य और अहिंसा की नीतियों का उल्लेख महत्वपूर्ण मंचों से करते रहे हैं। लगभग 3 माह पूर्व  प्रधानमंत्री ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस को संबोधित करते हुए भी यही कहा था कि ‘दुनिया युद्ध में नहीं बल्कि बुद्ध में समाधान ढूंढ सकती है। दुनिया को शांति के रास्ते पर चलने के लिए बुद्ध की शिक्षाओं से सीखना चाहिए। ऐसे समय में जब दुनिया अस्थिरता से ग्रस्त है, बुद्ध न केवल प्रासंगिक हैं बल्कि एक ज़रूरत भी हैं।’ इसी तरह पिछले दिनों एक बार फिर प्रधानमंत्री ने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में आयोजित 18वें प्रवासी भारतीय दिवस-2025 का उद्घाटन करते हुए बुद्ध की शिक्षाओं को याद किया और कहा कि यह देश अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बता पाने में सक्षम है कि भविष्य ‘युद्ध’ में नहीं, बल्कि ‘बुद्ध’ में निहित है।
सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दुनिया को युद्ध के बजाये ‘बुद्ध’ के शांति अहिंसा के विचारों पर चलने व उसे आत्मसात करने का बार बार जो ‘उपदेश ‘ दिया जाता है स्वयं उनकी पार्टी के नेता उनके विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग क्या  ‘बुद्ध’ की बताई गयी सत्य और अहिंसा की नीतियों का अनुसरण करते भी हैं या नहीं ? क्या हमारे देश में समय समय पर धर्म,समुदाय व जातियों के नाम पर होने वाली हिंसा और इसे भड़काने वाले नेताओं को  बुद्ध की सत्य और अहिंसा की शिक्षा से प्रेरित कहा जा सकता है ? यह बुद्ध का ही तो कथन है कि “भले ही चाहे कितनी अच्छी बातों को पढ़ लें या उन्हें सुन लें उसका तब तक फ़ायदा नहीं है जबतक हम ख़ुद उस पर अमल नहीं करते “। और यह भी बुद्ध ने ही कहा है कि “बुराई करने वालों को हमेशा अपने पास रखो क्योंकि वही तुम्हारी ग़लतियां तुम्हें बता सकते हैं “। बुद्ध की इन शिक्षाओं के सन्दर्भ में बुराई करने वालों को तो छोड़िये सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले विपक्ष व मीडिया से सत्ता कैसे पेश आ रही है ?क्या यही बुद्ध की नीतियों का अनुसरण है ? मनमोहन सिंह जैसे क़ाबिल व्यक्ति की ख़ामोशी पर उन्हें ‘मौन मोहन ‘ जैसे नाम दे दिये गये और अपनी लफ़्फ़ाज़ियों को ‘ज्ञान वर्षा ‘ का मरतबा दिया जाता है। जबकि बुद्ध का कथन है कि -“जो लोग ज़्यादा बोलते हैं वे सीखने की कोशिश नहीं करते जबकि समझदार व्यक्ति हमेशा निडर और धैर्यशाली होता है जो समय आने पर ही बोलता है”। यह भी बुद्ध का कथन है कि “दूसरों की आलोचना करने से पहले, ख़ुद की आलोचना करो”। परन्तु यहाँ तो गाँधी – नेहरू परिवार व ख़ास समुदाय को कोसने से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती। साथ ही स्व महिमामंडन इतना कि स्वयं को ‘अवतारी पुरुष’ बताने से भी नहीं चूकते ? ऐसे राजनेताओं को बुद्ध का यह कथन ज़रूर याद रखना चाहये कि -“जो इर्ष्या और जलन की आग में तपते रहते है उन्हें कभी भी शांति और सच्चा सुख प्राप्त नहीं हो सकता है”। और यह भी कि-“आप तभी ख़ुश रह सकते है जब बीत गयी बातों को भुला देते है”। परन्तु यहाँ तो गड़े मुर्दे उखाड़ कर ही अपनी राजनीति के परचम लहराये जा रहे हैं ?
इसी तरह म्यांमार के कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु को उनके कट्टरपंथी भाषणों व उनके हिंसक तेवरों की वजह से जाना जाता है। स्वयं को महात्मा बुद्ध का अनुयायी ही नहीं बल्कि बौद्ध भिक्षु बताने वाला यह शख़्स केवल आग ही उगलता रहता है। भारत की बहुसंख्यवादी राजनीति की तर्ज़ पर यह भी अपने भाषणों के द्वारा बौद्ध समुदाय की भावना को यह कहकर भड़काने का काम करता है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक एक दिन देश भर में फैल जाएंगे। इसी कथित बौद्ध भिक्षु को लेकर टाइम मैगज़ीन ने अपने 1 जुलाई, 2013 के अंक में मुख्य पृष्ठ पर उसकी फ़ोटो ‘दि फ़ेस ऑफ़ बुद्धिस्ट टेरर’ या ‘बौद्ध आतंक का चेहरा’ जैसे शीर्षक के साथ प्रकाशित की थी ? स्वयं को बौद्ध भिक्षु बताने वाले इसी आतंकी अशीन विराथु ने म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांगी ली को ‘कुतिया’ और ‘वेश्या’ कहकर सम्बोधित किया था। इस व्यक्ति पर अपने भाषणों के माध्यम से म्यांमार में लोगों को सताने की साज़िश रचने व उनकी सामूहिक हत्या कराने का आरोप लगाया गया है। इस के उपदेशों में वैमनस्यता की बात होती है और इसका निशाना मुस्लिम ख़ासकर रोहंग्या समुदाय ही होता है। हालांकि बर्मा के अनेक बौद्ध भिक्षु ऐसे भी हैं जो उसके वैमनस्य पूर्ण बयानों से नाखुश हैं। ऐसे भिक्षु साफ़तौर से यह कहते हैं कि  “उन्हें यह सब बहुत ख़राब लगता है। इस तरह के शब्दों का प्रयोग किसी बौद्ध भिक्षु को नहीं करना चाहिए।” इसी तरह पिछले दिनों श्रीलंका में कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु गालागोडाटे ज्ञान सारा को इस्लाम धर्म का अपमान करने और धार्मिक नफ़रत फैलाने के आरोप में नौ महीने की जेल की सज़ा सुनाई गई है। 2018 में भी ज्ञान सारा को एक आपराधिक मामले में छह साल की सज़ा सुनाई गई थी। दरअसल महात्मा बुद्ध के विचारों की बात करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि इन्हें अपने ‘आचार’ व व्यवहार में लाना भी उतना ही ज़रूरी है।

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