देश रोज़ाना: युद्ध बुरा होता है। यह सभी को पता है, लेकिन सदियों से युद्ध होते आए हैं। युद्ध आगे भी होते रहेंगे। युद्ध में सेनाएं लड़ती हैं, लेकिन आम जनता नहीं। नुकसान और जन हानि उन्हें भी सहना पड़ता है। बात अगर हमास और इजरायल की करें, तो इन दोनों तरफ की जनता मारी जा रही है, लोगों के मकान, दुकान और संपत्ति नष्ट हो रही है, लेकिन किसी भी तरफ की जनता युद्ध के समर्थन में नहीं है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है। बासम अरा मिन एक फलस्तीनी मुस्लिम हैं। रामी एक इसराइली यहूदी। मध्य पूर्व के संघर्ष में दोनों अपनी बेटियों को खो चुके हैं। दोनों इसराइल में रहते हैं। एक इसराइली पुलिसकर्मी ने बासम की बेटी अबीर को गोली मार दी थी। दस साल की उनकी बेटी बुरी तरह घायल हो गई थी।
रामी की बेटी समदर एक इसराइली फिदाइन हमले में मारी गई थी। उम्र सिर्फ चौदह साल थी। अब हमें यह लग सकता है कि ये एक दूसरे को दुश्मन समझते होंगे। लेकिन बदला लेने जैसी भावना में फंसने के बजाय बासम और रामी ने दूसरा रास्ता चुना। अमन और दोस्ती का। दोनों इस बात अच्छी तरह समझ गए हैं कि सत्ता और धर्म का उपयोग उन्हें लड़ाने के लिए किया जा रहा है। न हमास को उनके हितों चिंता है, न इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू को। दोनों को अपना प्रतिशोध प्यारा है। दोनों अपनी जिद में जन और धन हानि की परवाह किए बिना एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। अपनी बेटियों को इन दोनों का कहना है कि इस असहनीय पीड़ा ने दोनों के भाइयों के बीच एक कभी न खत्म होने वाली दोस्ती का रास्ता बना दिया है। दोनों का मानना है कि एक दूसरे को मार देने से मेरी बेटी वापस आने वाली नहीं है। हम जानवर तो हैं नहीं कि बिना सोचे-समझे एक दूसरे पर हमला करें।
नतीजा यह हुआ कि अपनी बेटियों के मारे जाने के बाद दोनों पिता पैरेंट्स सर्किल फैमिलीज फोरम में शामिल हो गए। यह वह ग्रुप है कि जो लोगों में शांति, भाईचारा और सद्भाव की भावना पैदा करने का प्रयास करता है। रामी इजरायली सेना में रह चुके हैं और अब वे बासम को बतौर नेता मानते हैं।