संजय मग्गू
तकनीक की दुनिया में आजकल यह दावा जाने लगा है कि वह दिन दूर नहीं, जब एआई चैटबॉॅट असली दोस्त से भी बेहतर होगा। क्या वाकई? ऐसा हो सकता है? यह सही है कि वर्चुअल असिस्टेंट या चैटबॉट के रूप में हमें एक ऐसा साथी उपलब्ध हो सकता है जिससे हम बात कर सकते हैं। वह हमारी कई तरह की समस्याओं का निदान भी सुझा सकता है। उसके साथ गेम्स खेला जा सकता है। ऊब होने पर थोड़ी देर के लिए मनोरंजन के तौर पर उससे बात की जा सकती है, लेकिन इन सारी खूबियों के बावजूद क्या असली दोस्त से बेहतर चैटबॉट या रोबोट को पाया जा सकता है? संभव ही नहीं है। समाज में हमारे जितने भी तरह के संबंध हैं, क्या उनकी भरपाई मशीनी मानव कर सकता है। हम जब बच्चे थे, कहीं चोट लग जाती थी, तो हमारी मां भी दुखी हो जाती थी, मानो दर्द का एहसास उसे भी हो रहा हो। दुखी बहन या भाई चोट को देखकर दूसरे कमरे में रखी दवा लेने के लिए भागती या भागते थे। चोट को साफ करते समय मां, बहन या भाई भी ‘सी-सी’ करते थे, मानो दवा लगाने पर उन्हें भी पीड़ा हो रही हो। चैटबॉट्स सिर्फ चैटिंग कर सकते हैं, मानवीय संवेदना का स्पर्श नहीं कर सकते हैं। जिस तरह पत्नी या प्रेमिका को प्यार भरी आंखों से निहारा जाता है, क्या चैटबॉट को वैसे निहारा जा सकता है। बच्चे स्कूल, कालेज या इससे बाहर अपने दोस्त के साथ खेलते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं और फिर चॉकलेट या पिज्जा खिलाने की बात कहकर मना भी लेते हैं। बहुत प्रेम उमड़ा तो आपस में लप्पी-झप्पी भी कर लेते हैं। जो बात आसानी से मुंह से नहीं कही जा सकती है, वह सारी बातें लप्पी-झप्पी के दौरान अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त हो जाती है। जब हम दुख में होते थे, तो हमारा दोस्त जिस तरह गले लगकर हमें सांत्वना देता था, हमारा साहस बढ़ाता था। अच्छे या बुरे हर कदम पर साथ होने का जो एहसास दिलाता था, वह चैटबॉट्स या मशीनी मानव में संभव है? आज मैं लगभग पचास साल का हो गया हूं, लेकिन बचपन के दोस्त के मिल जाने पर उसके कंधे से कंधा टकराने पर जो खुशी महसूस होती है, उसका कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है। बचपन के दोस्त से बिना किसी तकल्लुफ के तू-तड़ाक वाली भाषा में बात करने का जो आनंद है, वह अन्यत्र कहां मिल सकता है। अचानक पीछे से आकर पीठ पर धौल जमाते हुए मेरा कोई मित्र कहे कि बहुत बिजी हो गया है क्या? मिलता नहीं। उसकी इस बात में जो अपनापन है, जो अव्यक्त पीड़ा है अपने दोस्त से काफी दिनों तक न मिल पाने का, वह मशीनी मानव से मिलने पर नहीं हो सकता है। मानवीय संवेदना पर मशीनी संवेदना कभी भारी नहीं पड़ सकती है, दावा भले ही कितना किया जाए। कंधे पर भाई के हाथ का स्पर्श इस बात की आश्वस्ति प्रदान करता है कि वह साथ है। मशीनी मानव या बॉट्स से यह अनुभूति मिल सकती है? कतई नहीं। पत्नी को प्यार से निहारने का जो सुख है, वह सुख मशीन कतई प्रदान नहीं कर सकती है। हमें इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि मशीन मशीन है, इंसान इंसान है।
इंसान का मुकाबला भला मशीन कर सकती है ?
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