संजय मग्गू
बलात्कार को हथियार के रूप में उपयोग करने का उदाहरण अगर इन दिनों कहीं देखना हो, तो दक्षिण अफ्रीकी देश सूडान को देखिए। पिछले कई दशकों से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे सूडान की जनता कई तरह की समस्याएं एक साथ झेल रही है। गृहयुद्ध ने देश की पूरी अर्थव्यवस्था को तबाह और बरबाद कर दिया है। गृह युद्ध के चलते रोजगार और नौकरियों का तो सवाल ही नहीं रह गया है। अनाज और पानी की किल्लत का सामना इन दिनों सूडान की जनता तो कर ही रही है, सबसे बड़ी परेशानी तो यह है कि लड़कियों और महिलाओं की इज्जत सुरक्षित नहीं है। पिछले 17 महीने से सूडान गृहयुद्ध की चपेट में है। इससे पहले भी कई बार गृहयुद्ध और युद्ध की विभीषिका वहां की जनता झेल चुकी है। एक युद्ध या गृहयुद्ध खत्म होता, दो एक साल शांति रहती है और उसके बाद कोई न कोई गुट फिर गृह युद्ध शुरू कर देता है। पिछले सत्रह महीनों से सूडानी सेना और अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेस (आरएसएफ) के बीच युद्ध चल रहा है। सूडानी सेना और आरएसएफ के कमांडर कभी दोनों पक्के दोस्त हुआ करते थे। इन्होंने संयुक्त रूप से कई बार युद्धों और गृहयुद्धों में साथ-साथ भाग लिया है। लेकिन देश पर अपना वर्चस्व कायम करने की मंशा ने दोनों दोस्तों को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया है। राजधानी खार्दूम के अधिकांश हिस्सों पर आरएसएफ ने कब्जा कर लिया है। पिछले सत्रह महीने से अपने कब्जे वाले इलाके में आरएसएफ लड़ाके किसी के भी घर में घुस जाते हैं। वहां जो कुछ भी रुपये-पैसे मिलते हैं, छीन लेते हैं। घर की महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार करते हैं। उन्हें उठाकर अपने कैंप में ले जाते हैं। सामूहिक बलात्कार करते हैं और फिर चार-पांच दिन या जब मन होता है, तो उसे छोड़ देते हैं। सूडान में बड़ी संख्या में लड़कियां और महिलाएं आरएसएफ लड़ाकों के बलात्कार या सामूहिक बलात्कार की वजह से गर्भवती हैं। हालात इतने बदतर हैं कि माओं को आरएसएफ वालों से कहना पड़ रहा है कि मेरे साथ बलात्कार कर लो, लेकिन मेरी बेटियों को छोड़ दो। लेकिन क्रूर आरएसएफ वाले किसी भी प्रकार का रहम इन पर नहीं करते हैं। घर वालों के सामने महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार करते हैं और विरोध करने पर जान से मार देते हैं। राजधानी और आरएसएफ के कब्जे वाले इलाके में पुरुष घर से बाहर नहीं निकलते हैं। नील नदी के दूसरे सिरे पर स्थित शहर ओमडोरमैन से तीन-चार घंटे की पैदल यात्रा करके महिलाएं खाने पीने की चीजें खरीदने जाती हैं क्योंकि सेना के कब्जे वाले इलाके में सामान सस्ता मिलता है। यह कोई पहला मौका नहीं है, जब गृहयुद्ध या युद्ध का खामियाजा औरतों को अपनी इज्जत लुटवाकर भुगतना पड़ रहा है। सदियों से यही होता आया है। युद्ध महिलाओं की ही देह पर सदियों से लड़े जा रहे हैं। महिलाओं को युद्ध के दौरान जहां अपने परिजनों को खोना पड़ता है, वहीं अपनी इज्जत से भी महरूम होना पड़ता है। सैनिक किसी भी पक्ष के हों, सबसे पहले महिलाओं को ही निशाना बनाते हैं। बलात्कार उनके लिए एक हथियार की तरह होता है जिससे वे अपने विरोधी को कमजोर कर सकते हैं। यह मानवघाती युद्ध या गृहयुद्ध इस दुनिया से कब खत्म होगा?
संजय मग्गू