बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
वैशाली को भारतीय इतिहास में एक वैभवशाली गणराज्य के रूप में जाना जाता है। स्वामी महावीर और महात्मा बुद्ध से पहले ही यह लिच्छवि गणराज्य की राजधानी थी। यहां रहने वाली आम्रपाली वैश्या की कथाएं बौद्ध साहित्य में प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। कहा जाता है कि गणिका आम्रपाली बाद में महात्मा बुद्ध की शिष्या हो गई थी। वैशाली गणराज्य वर्तमान बिहार में हुआ करता था। विष्णु पुराण में वैशाली के 34 राजाओं का जिक्र किया गया है। इनमें से पहला राजा नाभाग बताया जाता है और अंतिम राजा सुमति। कहा तो यह भी जाता है कि अंतिम राजा सुमति राजा दशरथ का समकालीन था। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म भी वैशाली में ही हुआ था। किसी राजा के शासनकाल में वैशाली के नगर नायक की वीरता और प्रजावत्सलता की कहानी कही जाती है। कहते हैं कि एक बार वैशाली राज्य में कोई महोत्सव मनाया जा रहा था। उसी समय शत्रु सेना ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया। सतर्क न होने से वैशाली की पराजय हुई और विजेता सेनापति ने जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। इसे वैशाली का नगर नायक देख नहीं पाया। वह हार जाने के कारण विवश था। आखिरकार उसने विजेता सेनापति से मिलने का निश्चय किया और उसने सेनापति से कहा कि वह प्रजा पर अत्याचार बंद कर दे। सेनापति ने कहा कि सामने बह रही नदी में वह जब तक डूबा रहेगा, उसकी सेना कुछ नहीं करेगी। वह सेनापति भी जुबान का पक्का था। यह सुनकर नगर नायक तुरंत नदी में कूद पड़ा। जब काफी देर वह बाहर नहीं आया, तो गोताखोरों को उतारा गया। गोताखोरों ने देखा कि नगर नायक एक चट्टान को पकड़े हुए है। मरने के बाद भी उसने चट्टान को नहीं छोड़ा। यह देखकर सेनापति का दिल पसीज गया और वह वापस अपने राज्य लौट गया।