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सुंदरता और यौवन नहीं होते चिरस्थायी

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
जीवन का कोई भरोसा नहीं है। कब क्या हो जाए, कोई नहीं कह सकता है। आज जो बच्चा है, कल वह जवान होगा। आज जो जवान है, कल वह अधेड़ और बूढ़ा होगा। अपनी युवावस्था पर इतराने वालों को एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि सुंदरता और यौवन चिरस्थायी नहीं होते हैं। सुंदर से सुंदर व्यक्ति जब बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंचता है, तब उसका चेहरा और शरीर सुंदर नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में अपनी सुंदरता और यौवन पर इतराने वालों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि प्रकृति में कुछ भी स्थायी नहीं है। शहर के बाजार में एक भिखारी बैठकर भिक्षा मांगता था। वह इतना कमजोर हो चुका था कि उसके शरीर की एक-एक हड्डी साफ दिखाई देती थी। उसे देखकर उधर से गुजरने वाले एक युवक के मन में घृणा और दया के भाव एक साथ उभरते थे। एक दिन उस युवक ने उस भिखारी से कह ही दिया कि जब तुम इतने कमजोर हो, चल-फिर नहीं सकते हो, तो जीने की लालसा क्यों पालते हो? तुम और जीकर क्या करोगे? तुम्हें भीख भी मांगनी पड़ रही है। तुम भगवान से यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें मृत्यु देकर इन कष्टों से मुक्ति दिला दें। उसकी बात सुनकर भिखारी ने कहा कि बेटा! तुम्हारी बात सही है। मुझे इस उम्र में यकीनन मर जाना चाहिए। मैं भी ईश्वर से प्रति दिन यही मांगता हूं कि मुझे इस शरीर से मुक्ति दे दें, लेकिन शायद भगवान मुझे और जिंदा रखना चाहते हैं ताकि जो लोग मेरे इस शरीर को देखकर घृणा करते हैं, वे इस बात समझ सकें कि सुख और यौवन स्थायी नहीं होते हैं। बेटा! युवावस्था में मैं भी तुम्हारी तरह सुंदर और हष्ट-पुष्ट था। यह सुनकर युवक उस भिखारी की बात समझ गया। वह शर्मिंदा होकर चला गया।

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