– सोनम लववंशी
महिलाओं के लिए उनका अपना घर सबसे महफूज़ माना जाता है, लेकिन अब वही घर सुरक्षित नहीं रहें है। संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन वूमन) और संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) की हालिया रिपोर्ट की मानें तो साल 2023 में हर दिन औसतन 140 महिलाओं और लड़कियों की हत्या उनके अपने घरों में कर दी गई। यह संख्या इस बात को रेखांकित करती है कि महिलाओं के लिए अब उनके अपने घर भी महफूज़ नहीं रहें हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल करीब 51,100 महिलाओं और लड़कियों की हत्या उनके अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई, जबकि 2022 में यह आंकड़ा 48,800 था। देखा जाए तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा की इस चरम सीमा का सबसे बड़ा कारण पितृसत्तात्मक सोच, लैंगिक असमानता और सामाजिक ढांचे में महिलाओं की कमजोर स्थिति का होना है। जब घर ही उनके लिए असुरक्षित बन जाए, तो यह समाज की संरचना पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अक्सर ऐसी घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि परिवारों में महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिया जाता और उनकी स्वतंत्रता का दमन किया जाता है।
महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा का यह चरम हर क्षेत्र और वर्ग में देखा जा रहा है। चाहे वह विकसित देश हो या फिर विकासशील देश कोई भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। यह समस्या न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि समाज और देश की प्रगति पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। ऐसी घटनाएं केवल एक महिला की हत्या तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि पूरे परिवार और समुदाय को प्रभावित करती हैं। इस गंभीर स्थिति के समाधान के लिए सबसे पहले जरूरी है कि समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाए। महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता देकर उनकी स्थिति को मजबूत किया जाए। घरेलू हिंसा के खिलाफ कठोर कानूनों को लागू किया जाए। घरेलू हिंसा का दंश झेल रही महिलाएं अक्सर सामाजिक दबाव, शर्मिंदगी, और कानूनी मदद की कमी के कारण अपनी समस्याओं को सामने नहीं ला पातीं। इससे दोषियों को प्रोत्साहन मिलता है, और यह दुष्चक्र लगातार चलता रहता है। महिलाओं की सुरक्षा केवल उनके परिवार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है। जब तक हम सामूहिक रूप से इस समस्या को हल करने की दिशा में प्रयास नहीं करेंगे, तब तक महिलाओं और लड़कियों के लिए घर एक सुरक्षित स्थान नहीं बन पाएगा। ऐसे आँकड़े केवल संख्या नहीं हैं, बल्कि उस पीड़ा और असुरक्षा का प्रतीक हैं, जिसे महिलाएं प्रतिदिन झेलती हैं। समाज के हर वर्ग को यह समझना होगा कि महिलाओं का सम्मान और सुरक्षा केवल एक नैतिक दायित्व नहीं है, बल्कि यह समाज की उन्नति के लिए भी आवश्यक है।
साल 2023 के आंकड़ों को ही गौर से देखें तो यह साफ पता चलता है कि पुरुषों के हाथों जिन 85,000 महिलाओं और लड़कियों की हत्या हुई, उनमें से 60 प्रतिशत की हत्या उनके पार्टनर या परिवार के अन्य सदस्यों ने की थी। अपने ही करीबी के हाथों की गई हत्याओं के सबसे अधिक मामले अफ्रीका में थे, जहां यह संख्या 2023 में 21700 रही। जबकि आबादी के सापेक्ष पीड़ितों की संख्या में भी अफीक्रा सबसे आगे रहा। वहीं यूरोप और अमरीका में, 64 से 58 फीसदी महिलाओं की हत्या पार्टनर द्वारा की गई। फ्रांस में तो यह आंकड़ा 79 फीसदी रहा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल अमेरिका में भी यह दर काफी अधिक थी, जहां प्रति एक लाख में 1.6 महिलाएं अपने परिजनों के द्वारा पीड़ित थी। महिलाओं के लिए घर तभी सुरक्षित हो सकता है जब परिवार और समाज दोनों उन्हें समानता और सम्मान प्रदान करें। यह केवल एक महिला की सुरक्षा का सवाल नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की संरचना और प्रगति से जुड़ा मुद्दा है। जब महिलाएं सुरक्षित और सशक्त होंगी, तभी समाज भी समृद्ध और प्रगतिशील बन पाएगा। महिलाओं के खिलाफ इस हिंसा को समाप्त करना केवल एक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक नैतिक कर्तव्य भी है।
महिलाओं के लिए घर कितना सुरक्षित?!
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