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धधकती धरती को ठंडा करने का खोजिए उपाय

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संजय मग्गू
साल 2024 को विदा हुए अभी 22 दिन ही हुए हैं, लेकिन बीता हुआ वर्ष 2024 हमारे सामने एक चुनौती छोड़कर गया है। चुनौती यह है कि हम पृथ्वीवासी किस तरह आने वाले दिनों में पृथ्वी को गर्म होने से बचाते हैं। पर्यावरणविदों और प्रकृति विज्ञानियों ने अनुमान जताया था कि जिस तरह पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, उसके अनुसार सन 2030 तक यह तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। लेकिन समय की इस सीमा रेखा को पिछले साल ही पार कर लिया गया यानी सन 2024 में ही पृथ्वी का तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस बढ़ गया। बीते साल में 22 जुलाई अब तक का सबसे गर्म दिन रहा है। लास एंजिलेस में दो हफ्ते पहले लगी आग ने समझा दिया है कि यदि हमने हालात को गंभीरता से नहीं लिया, तो जलवायु परिवर्तन मानवजाति के लिए एक अभिशाप बनकर रह जाएगा। माना जा रहा है कि अमेरिका के लॉस एंजिलेस में लगी आग भी जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है। पिछले साल कनाडा और बोलीविया में लगी भयंकर आग ने भी इस बात का संकेत दे दिया था।  पूरी दुनिया धधक रही है। इस बात को इन दिनों के हालात से समझा जा सकता है। इस साल उस तरह की ठंडक नहीं पड़ी जिसके लिए जनवरी और दिसंबर के महीने जाने जाते हैं। पहाड़ों पर भी बर्फबारी देर से हुई और कम हुई। उत्तराखंड में औसत बर्फबारी में बीस प्रतिशत की कमी आई है। बर्फसे ढकी हिमालय की पहाड़ियां अब वैसी नहीं रहीं जैसी आज से दस साल पहले हुआ करती थीं। 1962 से लेकर अब तक हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर 30-32 प्रतिशत पिघल चुके हैं। हिमालय की सदा बर्फ से ढकी रहने वाली पहाड़ियां और शिखर अब एकदम नंगे दिखाई देने लगे हैं। यही क्यों, दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थि एंडीज पर्वत शृंखला के ग्लेश्यिर सन 1970 से अब तक 42 प्रतिशत खत्म हो चुके हैं। यही क्यों, यूरोप की सबसे बड़ी पर्वत शृंखला मानी जाने वाली आल्प्स का भी यही हाल है। सन 2022 में यहां के लगभग 60 प्रतिशत ग्लेशियर पिघल गए थे। पिछले दो-तीन साल में वह अपने पुराने स्वरूप को हासिल नहीं कर पाए हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते जहां पूरी दुनिया में ग्लेश्यिर पिघल रहे हैं, वहीं खेती पर भी संकट मंडराने लगा है। अभी से यह कहा जाने लगा है कि जलवायु परिवर्तन का असर मुख्य रूप से आठ फसलों मक्का, गेहूं, चावल, सोयाबीन, केला, आलू, कोको और कॉफी के उत्पादन पर पड़ेगा। इनका उत्पादन काफी घट जाएगा। इसके चलते वैश्विक अनाज उत्पादन घटेगा और महंगाई और बढ़ेगी। जलवायु परिवर्तन के कारण एक बहुत बड़ी आबादी विस्थापित होने को मजबूर होगी। यह विस्थापन उन्हें कहां ले जाएगा और उनमें से कितने लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी, इसका कोई अंदाजा नहीं है। मौसम में आ रहे बार-बार के बदलाव संकेत दे रहे हैं कि यदि हमने अभी से सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाए, तो आने वाले दिन बेहद कष्टकारक होंगे। मानव सभ्यता पर एक बड़े खतरे के रूप में सामने आएंगे।

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