कवि कुंभनदास का जन्म गोवर्धन (मथुरा) के निकट जमुनावतौ गांव में 1525 ईस्वी में हुआ था। कुंभनदास के पास थोड़ी बहुत खेती थी। उसी की आय से उनके घर का खर्च चलता था। वह बहुत संतोषी व्यक्ति थे। उन्हें धन का लोभ कभी नहीं रहा। एक बार अकबर के दरबार में किसी ने उनकी रचना प्रस्तुत की, तो अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुलाया। दरअसल, वह श्रीनाथ मंदिर में रोज भजन गाया करते थे। अकसर वह स्वरचित भजन और भक्तिपूर्ण रचनाएं रचते थे। वह श्रीनाथ मंदिर में पूजा अर्चना किए बिना नहीं रह सकते थे। यही वजह थी कि वह अकबर के दरबार में जाना नहीं चाहते थे। लेकिन गए और उन्होंने कहा कि संतन को कहां सीकरी सों काम। वहां बहुत सम्मान होने पर भी उनका मन खिन्न ही रहा। एक बार की बात है। राजा मान सिंह वेश बदलकर कुंभनदास के घर गए। उसी समय कुंभनदास ने अपनी बेटी से दर्पण लाने को कहा। संयोग से दर्पण टूट गया। तब कुंभनदास ने कहा कि कोई बात नहीं। किसी बर्तन में थोड़ा जल लाकर दो। उनकी बेटी ने एक टूटे हुए घड़े में पानी लाकर दिया। उस स्थिर जल में अपना मुंह देखकर माथे पर उन्होंने तिलक लगाया। यह देखकर राजा मान सिंह को बहुत दुख हुआ। वह उस समय थोड़ी बातचीत करके अपने घर चले गए। अगले दिन राजा मानसिंह एक कीमती दर्पण लेकर कुंभनदास के घर पहुंचे और कहा कि कविराज! मेरी ओर से एक तुच्छ भेंट स्वीकार करें। तब कुंभनदास बोले, अच्छा महाराज, कल आप ही आए थे। आप ऐसी तुच्छ वस्तुओं को लेकर न आया करें। आप जब आएं खाली हाथ आएं। इन बेकार की वस्तुओं को घर में रखने के लिए हमारे पर जगह नहीं है। राजा मानसिंह उनकी बात सुनकर लज्जित हो गए।
अशोक मिश्र