मासूम की मौत से उठ रहे सवाल
सोनीपत की घटना ने दिल दहला दिया। दसवीं कक्षा के किशोरवय छात्र ने चौथी कक्षा के मासूम छात्र अर्जित त्रिपाठी की पहले सिर पर वार करके, फिर गला दबाकर हत्या कर दी। हत्यारोपी किशोर की मृतक अर्जित दोस्ती थी। दोस्त ने ही मौत के घाट उतार दिया। उसने पहले मासूम को अगवा किया, फिर उसके परिवार को छह लाख रुपये की फिरौती वाला पत्र लिखा। जब तक मासूम के घर वाले फिरौती की रकम का इंतजाम कर पाते, तब तक आरोपी ने उसे मौत के घाट उतार दिया। पुलिस की पूछताछ में आरोपी ने कहा कि उसके घर की माली हालत ठीक नहीं है, इसलिए उसने अर्जित के अपहरण की योजना बनाई और फिरौती की मांग वाला पत्र लिखा। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि किशोर ने अर्जित को अगवा कर फिरौती का पत्र तो भेज दिया, लेकिन अर्जित के शोर मचाने पर उसकी हिम्मत जवाब दे गई और उसने राज खुल जाने के भय से मासूम को मार डाला।
यह घटना हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है। जैसे, घर की माली हालत खस्ता होने की बात आरोपी किशोर के मन में इतने गहरे तक कैसे पैबस्त हो गई कि उसने ऐसा घातक रास्ता अख्तियार कर लिया? क्या उसके परिजनों को कभी उसकी मन:स्थिति का अंदाजा नहीं लग पाया? अल्प-मध्यम आय वर्गीय परिवारों की माली हालत अमूमन ढीली रहती है। ऐसे में, अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को इस चुनौती से दूर रखें, उन्हें आश्वस्त करें कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। यही नहीं, उनकी गतिविधियों पर भी बराबर नजर रखने की जरूरत है, ताकि किसी चीज का अभाव उनके कदम भटका न सके। उन्हें समझाते रहें कि वे लोगों के प्रति कैसा व्यवहार करें। दरअसल, ऐसे भटकाव की एक वजह बच्चों का इंटरनेट से जरूरत से ज्यादा जुड़ाव भी है, जो उन्हें समय से पहले मैच्योर कर रहा है। वह जल्दी ही सब कुछ जान ले रहा है। इंटरनेट ने हमारा जीवन आसान तो किया है, लेकिन एक हद मुश्किलें भी पैदा कर रखी हैं। किशोरों द्वारा किए जाने वाले ज्यादातर अपराध इंटरनेट पर उपलब्ध तौर-तरीकों पर आधारित होते हैं।