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सामाजिक-आर्थिक अंक मामले में सुप्रीमकोर्ट का फैसले का इंतजार

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हरियाणा में सरकार नौकरियों में सामाजिक और आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण का मामला अब सुप्रीमकोर्ट पहुंच गया है। पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत का लाभ युवाओं को देने वाले नियम को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना है कि कोई भी राज्य अंकों में पांच प्रतिशत का लाभ देकर अपने ही निवासियों के लिए रोजगार को प्रतिबंधित नहीं कर सकता है। इस मामले की सुप्रीमकोर्ट ने अच्छी तरह व्याख्या करते हुए कहा था कि सुप्रीमकोर्ट ने नागरिकों के अधिकारों को अच्छी तरह समझा है। सुप्रीमकोर्ट का मानना है कि निवास के आधार पर किसी नागरिक को नौकरियों के मामले में प्रमुखता नहीं दी जा सकती है।

ऐसा करना समानता के अधिकार कानून का उल्लंघन करना है। हाईकोर्ट का तो यहां तक कहना था कि पांच प्रतिशत का लाभ उन लोगों को नहीं दिया गया जिनके मां-पिता सरकारी नौकरी में हैं। जिन लोगों के माता-पिता छोटी-मोटी नौकरी करते हैं, रेहड़ी लगाते हैं, छोटा-मोटा व्यवसाय करते हैं, ऐसे लोगों को पांच प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया गया। कुछ साल पहले जजपा के नेतृत्व में प्रदेश की तत्कालीन मनोहर लाल सरकार ने नियम बनाया था कि 40-50 मासिक वेतन से कम वाली निजी नौकरियों पर 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों का हक होगा। निजी क्षेत्र की जितनी भी कंपनियां और कल-कारखाने हैं, उनमें 75 स्थानीय लोगों की भर्ती अनिवार्य कर दी गई थी।

सरकार के इस फैसले के खिलाफ प्रदेश के पूंजीपति हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को अंसवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। बाद में प्रदेश सरकार ने इस मामले में अपने कदम पीछे खींच लिए। यदि यह नियम निजी कंपनियों पर लागू रहता, तो अव्यवस्था फैल जाने का खतरा था। निजी कंपनियों को मजबूरी में कम योग्य या अकुशल लोगों का चुनाव करना पड़ता। जहां तक वर्तमान मामले की बात है, सरकार अपनी फरियाद लेकर सुप्रीमकोर्ट पहुंच चुकी है।

इस पर क्या फैसला होता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन मामले के विवादित हो जाने से ग्रुप सी और डी के 53 हजार पदों की भर्ती का परिणाम रद्द हो चुका है। अब सरकार को हाईकोर्ट ने बिना सामाजिक-आर्थिक लाभ दिए भर्ती के परिणाम की नई सूची बनाने का आदेश दिया है। प्रदेश सरकार भले ही यह कहे कि गरीबों और वंचितों को सरकारी नौकरी में पांच प्रतिशत अंक का लाभ देकर वह आगे लाना चाहती थी, लेकिन अब यदि सुप्रीमकोर्ट में भी यही फैसला बरकरार रहा, तो आगामी विधानसभा चुनावों में इस फैसले का असर पड़ेगा। यह असर किस रूप और कितना पड़ेगा, यह बता पाना तो अभी संभव नहीं है।

-संजय मग्गू

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