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Haryana Election: रेवाड़ी की चुनावी जंग, राव बनाम कापड़ीवास, कौन मारेगा बाजी?

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विधानसभा चुनाव (Haryana Election: )के लिए रणभेरी बज चुकी है। चुनाव की तारीखों का भी ऐलान हो चुका है, टिकट का ऐलान भी जल्द होने वाला है। इस बार टिकट की जंग राव बनाम रणधीर सिंह कापड़ीवास के बीच मानी जा रही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा न होने के कारण इस विधानसभा चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह की ताकत बढी है। पार्टी ने एक तरह से दक्षिणी हरियाणा को फतह करने के लिए राव के आगेएक तरह से सरेंडर कर दिया है।

Haryana Election: राव अपने खास समर्थकों को ही चुनाव लड़वायेंगे

यह साफ हो चुका है कि आधा दर्जन से अधिक सीटों पर राव अपने खास समर्थकों को ही चुनाव लड़वायेंगे, दक्षिणी हरियाणा की बाकी बची सीटों पर भी राव का सहमत होना जरूरी हो गया है। परिस्थितियों को देखते हुए पार्टी किसी भी कीमत पर राव की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती। पार्टी भी यह जानती है कि,अगर तीसरी बार सत्ता में लौटना है तो, दक्षिणी हरियाणा के किले को फतह करना ही होगा। पार्टी के शीर्ष नेता यह जानते हैं कि, बिना राव के दक्षिणी हरियाणा के किले को फतेह नहीं किया जा सकता। राव की ताकत बढ़ने के साथ ही रेवाड़ी विधानसभा की भी अब तस्वीर उभरने लगी है।  इस बार भी खेल भी वही है, मैदान भी वही है, हां यह है जरूर है कि,कुछ खिलाड़ियों के इस बार चेहरे जरूर बदल जाएंगे। वर्ष 2019 के विधानसभा  चुनाव की बात करें तो राव इंदरजीत सिंह ने अपने खास समर्थक सुनील मूसेपुर को टिकट दिलवाया था। टिकट की घोषणा के तुरंत बाद ही राव समर्थक को हराने की पूरी व्यू रचना रच दी गई थी।

दो चेहरे कौन

यह चुनाव  कांग्रेस बनाम बीजेपी नहीं था, बल्कि यह चुनाव भाजपा बनाम भाजपा  ही था, भाजपा के ही कुछ नेताओं ने कैप्टन परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसी रणनीति तैयार की थी कि भाजपा प्रत्याशी जीत ही नहीं पाया। पार्टी ने भी बगावती सुर अपनाने वालों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया, बल्कि पार्टी ने एक्शन लेने की बजाय उन्हें इनाम से नवाजा। अगर समय रहते पार्टी अनुशासनहीनता का डंडा चलाती,तो इस बार फिर से कोई भाजपा का खेल बिगड़ने की हिमाकत नहीं करता। पार्टी में अब दो ऐसे चेहरे हैं जो,खुद का वजूद रखते हैं। पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास व सतीश यादव वह दो चेहरे हैं जिनका व्यक्तिगत वोट बैंक मजबूत रहा है। सतीश यादव ने वर्ष 2009 में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और उन्होंने 35 हजार से अधिक मत हासिल किये, भाजपा के दूसरे नेता कापड़ीवास ने भी भाजपा की टिकट पर इस चुनाव में करीब 24 हजार मत प्राप्त किये। वर्ष 2014 के चुनाव में भी दोनों ने अच्छा प्रदर्शन किया। इस चुनाव में करीब 81हजार मत लेकर कापड़ीवास विधायक बने तथा इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ रहे सतीश यादव ने करीब 35 हजार मत हासिल किया। इस चुनाव में लगातार छह बार जीत दर्ज करते आ रहे कैप्टन अजय सिंह यादव तीसरे स्थान पर खिसक गए। वर्ष 2019 के चुनाव में जय वीरू की जोड़ी ने एक दूसरे का जमकर साथ दिया। इस चुनाव में रणधीर सिंह कापड़ीवास का साथ देने के लिए सतीश यादव ने मैदान छोड़ दिया। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि,इस बार सतीश यादव को टिकट नहीं मिलती है तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं।एक बार फिर से वर्ष 2019 के चुनाव जैसी तस्वीर खींचने की पूरी कोशिश की जाएगी।

रेवाड़ी की दुर्दशा के लिए आखिर जिम्मेदार कौन?

चुनाव को सर पर देखकर टिकट का हर दावेदार रेवाड़ी की दुर्दशा का रोना रो रहा है। कोई रेवाड़ी की दुर्दशा के लिए विधायक चिरंजीव राव को दोषी मानता है तो,कोई नगर परिषद की चेयरपर्सन पूनम यादव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराता है लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि  रेवाड़ी की दुर्दशा के लिए वह नेता जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए भाजपा प्रत्याशी को इस चुनाव में हराया। गत चुनाव में हर कोई यह मानकर चल रहा था कि, भाजपा दूसरी बार सरकार बनाएगी और हुआ भी ऐसा ही लेकिन कुछ नेताओं के निजी स्वार्थ के कारण गत पांच वर्षों में  रेवाड़ी विकास के मामले में पिछड़ गई।इस चुनाव में भी जनता को ठगने की पूरी तैयारी कर ली गई है। अब जनता पिछले चुनाव से  कितना सबक ले पाई वह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा।

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