हरियाणा में इस बार विधानसभा चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाले हैं। भाजपा और कांग्रेस में भितरघात, बगावत और असंतोष की लहर अब ऊपरी सतह पर थोड़ी-थोड़ी दिखने लगी है। दबी जुबान से टिकट न मिलने पर धमकी, संकेतों में असंतोष का प्रकटयन हो रहा है। हाईकमान की बात मानने की बात कहते हुए भी छिपे शब्दों में टिकट न मिलने पर मजा चखाने की बातें की जा रही हैं। भाजपा और कांग्रेस के अभी तक टिकट बंटवारा नहीं हो पाया है। जहां तक, इनेलो, जजपा और आप जैसी पार्टियों की बात है, इनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। हां, इन्हें कुछ मिलने की आशा जरूर है। यही वजह है कि इन्हें अपने कुछ उम्मीदवार जरूर घोषित कर दिए हैं। हरियाणा की प्रमुख पार्टियों के सामने संकट यह है कि किसको टिकट दें और किसका टिकट काट दें।
खैर, इन सब बातों के बाद कुछ मुद्दे भी हैं जिनको लेकर सभी दलों ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है। वैसे किसानों का मामला तो जगजाहिर है कि वे काफी हद तक भाजपा और जजपा से नाराज हैं। कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल इसे भुनाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और आगे भी करने वाले हैं। जातीय जनगणना कांग्रेस का प्रमुख हथियार माना जा रहा है। यह कितना कामयाब होगा, जब परिणाम आएंगे, तभी इसका पता चलेगा। लेकिन इतना तो तय है कि यह मुद्दा भाजपा को काफी परेशान करने वाला है। कांग्रेस धर्म से हटकर जाति को केंद्रीय मुद्दा बनाने के फेर में है जिसमें वह लोकसभा चुनाव में काफी हद तक सफल रही है।
गरीबी, बेकारी और महंगाई कमोबेश हर चुनाव में एक मुद्दा रहा है। भले ही प्रमुख न रहा हो। हरियाणा में इस बार अग्निवीर योजना भी एक मुद्दा बन सकती है। हरियाणा में भारी मात्रा में नवयुवक सेना में भर्ती होने का सपना देखते हैं। सेना में हरियाणा के युवाओं की भागीदारी कम भी नहीं है। इसलिए इन मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस इस मुद्दे को तूल देने की फिराक में है। एसवाईएल मामले को लेकर भी भाजपा और कांग्रेस दोनों आम आदमी पार्टी को घेरने के प्रयास में हैं। वैसे आप राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ रही है। पंजाब में भी उसने लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ा था।
ऐसी स्थिति में एसवाईएल मुद्दे पर पंजाब सरकार को घेरने से कांग्रेस भी नहीं चूकना चाहती है। कई दशक से पानी एक मुद्दा बना हुआ है। प्रदूषण और एम्स को सत्ता विरोधी दल कितना उछाल पाते हैं और उसका किस तरह चुनावी लाभ उठा पाते हैं, यह उनके कौशल पर निर्भर है। बहरहाल, हरियाणा में जैसे-जैसे नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख 5 सितंबर नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों में उठापटक तेज होती जा रही है।
-संजय मग्गू