पंजाब के अमृतसर(Punjab Golden Temple:) में शुक्रवार को ‘बंदी छोड़ दिवस’ के अवसर पर अनेक श्रद्धालुओं ने स्वर्ण मंदिर में मत्था टेका। सुबह से ही श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर और सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ अकाल तख्त के गर्भगृह में मत्था टेकने के लिए कतार में खड़े दिखे।
‘बंदी छोड़ दिवस’ 1620 में (Punjab Golden Temple:)मुगल जेल से 52 राजाओं के साथ छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद की ऐतिहासिक रिहाई का प्रतीक है। गुरु हरगोबिंद अपनी रिहाई के बाद स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे, जहां इस अवसर पर लोगों ने मंदिर को दीयों से रोशन किया था।
हालांकि, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने हाल ही में सिखों को बंदी छोड़ दिवस पर अपने घरों और अन्य इमारतों को बिजली लाइटों से सजाने से परहेज करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि इसी दिन “1984 में सिखों के क्रूर नरसंहार” की 40वीं बरसी भी है। उन्होंने सिखों से पारंपरिक दीयों से सजावट करने का अनुरोध किया और कहा, “40 साल पहले 1 नवंबर, 1984 को दिल्ली और देश भर के 110 अन्य शहरों में सिख समुदाय के सदस्यों का नरसंहार हुआ था। भीड़ ने सिखों की बेरहमी से हत्या की थी, जिसे तत्कालीन भारत सरकार का समर्थन प्राप्त था।”