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संत न छोड़े संतई, कोटिक मिले असंत

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संत कबीरदास ने सैकड़ों साल पहले संत का चरित्र चित्रण करते हुए कहा था-संत न छोड़े संतई, कोटिक मिले असंत, मलय भुजंगहि बेधिया, शीतलता न तजंत। संत को अगर करोड़ों दुष्ट लोग मिलें, उनके साथ दुर्व्यवहार करें, तो भी वह अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करता है। जिस प्रकार चंदन के वृक्ष पर सर्प लिपटे रहते हैं, लेकिन वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता है। सज्जन व्यक्ति होता ही ऐसा है। इस संदर्भ में एक कथा है। किसी गांव में शीतल नाम का व्यक्ति रहता था। वह अत्यंत सज्जन और दयालु था। वह अपने नाम के अनुरूप शांत ही रहा करता था।

लोग उसका बहुत सम्मान भी करते थे। वह सबसे मृदु बोलता था और मांगने पर उचित सलाह भी दिया करता था। उसी गांव में कुछ लोग ऐसे भी थे जिनको शीतल की सज्जनता अच्छी नहीं लगती थी। दुष्ट लोग उसको परेशान करने के लिए अपने घर का कूड़ा-करकट लाकर उसके घर के सामने डाल जाते थे। कई बार तो उसमें कांटे और नुकीले पत्थर भी होते थे ताकि वह घायल भी हो जाए। शीतल रोज सूरज निकलने से पहले उठता और घर के साथ-साथ बाहर पड़ा कूड़ा भी समेटता और ले जाकर उसको कूड़ेदान में डाल देता था। यह क्रम काफी दिनों से चलता आ रहा था।

एक दिन कुछ लोगों ने पंचायत बुलाई और शीतल को परेशान करने वालों को दंड देने की बात कही। पंचायत ने शीतल से पूछा कि आप ऐसे लोगों को क्या दंड देना चाहते हैं? शीतल ने कहा कि कोई दंड नहीं देना चाहता है। पंचायत ने कहा कि फिर ऐसा कब तक चलेगा? शीतल ने कहा कि जब तक लोगों के दिल से ईर्ष्या रूपी नुकीले पत्थर और कांटे नहीं निकल जाते हैं। पंचायत में कूड़ा फेंकने वाले लोग भी थे। वह यह सुनकर लज्जित हो गए और उससे दुर्व्यवहार करना छोड़ दिया।

-अशोक मिश्र

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