हमारे देश में निस्वार्थ सेवा करने वाले महापुरुषों और धनिकों की कभी कमी नहीं रही है। एक बार की बात है। सिरोही राज्य में एक लंबे समय के लिए अकाल पड़ा। लोगों के भूखे मरने की नौबत आ गई। राज्य में काम-काज ठप हो गया। लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए। राजा ने अपनी प्रजा के लिए खजाने का मुंह खोल दिया। वह अपनी प्रजा के लिए जो कुछ भी कर सकता था, उसने किया। इसके बावजूद उसका खजाना कम पड़ गया। कई सालों से बारिश न होने से अन्न उत्पादन ही नहीं हुआ था। राजा ने टैक्स माफ कर दिया था।
लोगों की जरूरत के हिसाब से खजाने से धन भी दिया जा रहा था। ऐसे में खजाना खाली होना ही था। एक दिन राजा दरबार में चिंतित बैठे थे, तो एक दरबारी ने कहा कि नंदीवर्धन पुर के नगर सेठ से यदि सहायता मांगी जाए, तो शायद कुछ हो सकता है। कुछ लोगों ने कहा कि उससे राजा का सहायता मांगना उचित नहीं है। लेकिन राजा ने कहा कि मैं सहायता मांगूंगा। उसने एक मंत्री और कुछ दरबारियों को नगर सेठ शाह के पास सहायता के लिए भेजा। नंदीवर्धन पुर में जब यह दल पहुंचा तो देखा कि एक व्यक्ति गौशाला में काम कर रहा है।
मंत्री ने रौब से कहा कि ऐ मजदूर, जाकर शाह से कहो कि मंत्री जी आए हैं। वह व्यक्ति अंदर गया और थोड़ी देर बाद अच्छे कपड़े पहनकर बाहर आया और बोला, मैं ही हूं शाह। बताइए क्या कर सकता हूं। मंत्री ने सारी बात बताई और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। शाह ने कहा कि आप अगर संदेश भिजवा देते तो मैं आपकी आज्ञा का पालन करता। मेरा सारा धन राज्य की सेवा के लिए ही तो है। यह सुनकर मंत्री ने नगर सेठ का आभार व्यक्त किया। नगर सेठ ने इसके बाद प्रजा की भरपूर सहायता की।
-अशोक मिश्र
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