काशी सदियों तक उच्च शिक्षा का केंद्र रहा है। यह आध्यात्मिक और धार्मिक नगरी होने के साथ-साथ उच्च शिक्षा के लिए भी विख्यात रही है। यहां से पढ़कर निकलने वाले युवाओं को समाज में बहुत सम्मान के साथ देखा जाता था। काफी पुरानी बात है। दो पंडितों ने काशी में कई वर्षों तक रहकर धर्म और शास्त्रों का अध्ययन किया। वे काफी प्रखर बुद्धि के थे, लेकिन उनमें एक कमी भी थी। वे एक दूसरे के प्रति ईष्यालु थे और अपने आप को महापंडित समझते थे। जब दोनों की शिक्षा पूर्ण हुई तो दोनों एक दूसरे के साथ अपने घर की ओर रवाना हुए।
चलते-चलते रास्ते में रात हो गई तो दोनों एक शहर के सबसे अमीर व्यापारी के यहां रुके। जब व्यापारी को यह पता चला कि दोनों पंडित काशी से पढ़कर आए हैं, तो उसने थोड़ी देर तक दोनों से बातचीत की। दोनों पंडितों के साथ बातचीत करने के बाद वह यह समझ गया कि दोनों एक दूसरे को मूर्ख समझते हैं और अपने आपको महान विद्वान। उन दोनों पंडितों की बातचीत का लहजा और बातचीत उस व्यापारी को अच्छी नहीं लगी।
फिर भी उसने बड़े धैर्य के साथ उनको सुना। थोड़ी देर बाद उसने उन दोनों पंडितों से अलग-अलग बातचीत की। उनकी बातचीत के बाद वह एक निष्कर्ष पर पहुंचा। उसने थोड़ी देर बाद कहा कि चलिए, भोजन तैयार हो गया है। आप दोनों भोजन ग्रहण कर लें। जब वह दोनों पंडित भोजन ग्रहण करने पहुंचे तो एक थाल में चारा और दूसरे थाल में भूसा देखकर गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा कि हम आपको जानवर दिखाई देते हैं। इस पर व्यापारी ने कहा कि आप दोनों ने ही तो एक दूसरे के बारे में कहा था कि वह बैल है, वह गधा है। यह सुनकर दोनों पंडित लज्जित हो गए। उन्होंने व्यापारी से क्षमा मांगी और अहंकार न करने का वचन दिया।
-अशोक मिश्र