जब भी अर्थव्यवस्था की बात चलती है, तो यही कहा जाता है कि हमारा देश साल 2028 तक दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था वाला देश होगा। भारत की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर से अधिक की होगी। आने वाले वर्षों में खपत, घरेलू और विदेशी कंपनियों से होने वाला पूंजी निवेश और बढ़ने वाले निर्यात के चलते हमारा देश तेजी से विकास करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्र और राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी बात-बात पर देश और प्रदेश की जनता को दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था होने का सपना दिखाते थकते नहीं हैं। सवाल यह है कि जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में तेजी आती है, तो किसको फायदा होता है? सरकार, उस देश के पूंजीपतियों की पूंजी में बढ़ोतरी होती है। थोड़ा बहुत रोजगार भी पैदा होता है। लेकिन इससे परकैपिटा इनकम कितनी बढ़ेगी?
इसका कोई जवाब शायद ही कोई दे। भारत ने सातवीं और छठवीं अर्थव्यवस्था से पांचवीं अर्थव्यवस्था तक सफर किया, लेकिन आम आदमी की स्थिति में क्या फर्क आया? जब तक प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी नहीं होती है, तब तक आम आदमी का भला होने वाला नहीं है। असंगठित उद्योगों के वार्षिक सर्वे और नेशनल सैंपल सर्वे आफिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले सात साल में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में हालात सुधरने की जगह बिगड़े ही हैं। सात साल में देश के मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े 18 लाख उद्योग बंद हो गए और इन उद्योगों के बंद होने से 54 लाख नौकरियां चली गईं। इतना ही नहीं, मैन्युफैकचरिंग सेक्टर में सात साल में 9.3 प्रतिशत की गिरावट आई है।
एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2015 में से जून 2016 के बीच इस सेक्टर में 1.97 करोड़ असंगठित उद्योग थे, लेकिन अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच इनकी संख्या 1.78 करोड़ ही रह गई। इस क्षेत्र में सन 2015-16 में जहां 3.60 करोड़ लोग काम कर रहे थे, वहीं साल 2022 से 2023 के बीच नौकरियों में 15 प्रतिशत की गिरावट आई और नौकरियों की संख्या 3.06 रह गई। सांख्यकी पर स्थायी समिति के अध्यक्ष प्रणव सेन की बात पर विश्वास करें, तो पिछले एक दशक में नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महामारी के चलते असंगठित क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एक दशक पहले जब कोई प्रतिष्ठान खुलता था, तो वह पंद्रह से बीस लोगों को रोजगार देता था,
लेकिन अब हालत यह है कि एक प्रतिष्ठान 2.5 से तीन लोगों को ही रोजगार देता है। ज्यादातर मामलों में लोगों को यही कोशिश रहती है कि उस संस्था में घर के ही लोग हों और बाहर वालों को कोई काम न देना पड़े। देश में वैसे भी बेरोजगारी एक सबसे बड़ा मुद्दा है। अर्थव्यवस्था की हालत न सुधरने की वजह से दिनोंदिन बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। यदि हालात में सुधार नहीं हुआ तो तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए बेरोजगार एक बहुत बड़ा खतरा बन जाएंगे।
-संजय मग्गू