महात्मा बुद्ध ने जब सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया, तो उनके क्रांतिकारी विचारों को सुनकर काफी लोग प्रभावित हुए। लोगों ने यह भी जाना कि लिच्छवी गणराज्य का राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति और लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यासी हो गया है, तो उन्हें और भी ताज्जुब हुआ। महात्मा बुद्ध ने लोगों को सरल भाषा में धर्म और अध्यात्म का मर्म समझाया और तत्कालीन समाज में फैले पाखंड का डटकर विरोध किया। शायद यही वजह है कि कई देशों में आज भी महात्मा बुद्ध की भगवान मानकर पूजा की जाती है।
एक बार एक व्यक्ति ने बुद्ध से पूछा कि आप पिछले कई वर्षों से लोगों को शांति का उपदेश दे रहे हैं। आपके अनुसार कितने लोगों को शांति प्राप्त हुई। उसकी वाणी से महात्मा बुद्ध समझ गए कि यह व्यक्ति उनकी परीक्षा लेना चाहता है। उन्होंने मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहा कि मैं तुम्हारी बात का जवाब देने से पहले यह जानना चाहता हूं कि तुम्हारे परिवार में कितने लोग शांति चाहते हैं। घर जाकर उनसे पूछकर मुझे बताओ। यह सुनकर व्यक्ति अपने घर गया और सबसे यही पूछा कि वे क्या चाहते हैं?
परिवार के किसी सदस्य ने पुत्र की कामना की, किसी ने धन-संपत्ति की चाह व्यक्त की। किसी को विवाह करना था, तो कोई कुछ चाहता था। उसने अपने मित्रों और रिश्तेदारों से पूछा। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि शांति कोई नहीं चाहता था। उसने आकर यह बात बुद्ध को बताई। बुद्ध ने कहा कि संसार में शांति की कामना करने वाले बहुत थोड़े से लोग हैं। सबकी अलग-अलग कामनाएं हैं। जो शांति चाहता है, वह अपने प्रयास में निरंतर लगा रहता है। अपनी लगन और मेहनत से अंत में वह शांति हासिल करके ही रहता है।
-अशोक मिश्र