पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की एक कहानी ‘महत्वाकांक्षा और लोभ’ जरूर पढ़ी थी। यह एक मछुआरे, उसकी पत्नी और सुनहरी मछली की कहानी है। इस कहानी में कैसे लोभ दिनोंदिन बढ़ता जाता है और एक दिन सब कुछ हाथ से चला जाता है, इसकी बहुत अच्छे तरीके से व्याख्या की गई है। हालांकि, रूसी साहित्य में भी ऐसी ही कहानी मौजूद है जिसे शायद बख्शी जी ने भारतीय परिवेश में गढ़ा है। ठीक ऐसी ही एक कथा है कपिल नाम के ब्राह्मण की। कपिल नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था। वह उसकी हर इच्छा को पूरी करने का प्रयास करता था। एक दिन उसकी पत्नी ने कहा कि मेरी आभूषण पहनने की इच्छा हो रही है। लेकिन क्या बताऊं।
सोना कहां से आएगा? उसकी बात सुनकर उसे याद आया कि हमारा राजा सुबह उठने पर राज महल के बार जिसको सबसे पहले देखता है, उसे दो तोला सोना देता है। यह सोचकर वह आधी रात को ही राजा के महल की ओर निकल पड़ा। रात में उसे महल के पास घूमते देखकर सैनिकों ने उसे पकड़ लिया और सुबह राजा के दरबार में उसे पेश किया। कपिल ठहरा सच्चा और सीधा सादा। उसने सारी बातें सच-सच बता दीं। राजा उसकी बात सुनकर काफी प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि तुम क्या चाहते हो? कपिल ने सोचा, दो तोला सोना मांग लूं।
फिर सोचा, दो तोला से क्या होगा? एक सौ स्वर्ण मुद्राएं मांग लूं। फिर उसे विचार आया कि अगर एक हजार स्वर्ण मुद्राएं मांगूं तो कुछ बात बन सकती है। तब राजा ने कहा-तुमने कुछ मांगा नहीं। कपिल ने सोचा, यदि आधा राज्य मांग लूं, तो चैन से रह सकता हूं। तभी उसे अपनी लालच पर शर्म महसूस हुई। उसने राजा से कहा कि मुझे जो चाहिए था, वह मुझे पहले ही मिल गया है। लालच पर विजय पा लिया है। यह कहकर वह लौट गया।
-अशोक मिश्र