मतदान की तारीख को लेकर राजनीतिक दलों में जुबानी जंग छिड़ गई है। भाजपा और इनेलो एक अक्टूबर को होने वाले मतदान की तारीख दूसरी चाहते हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने तो बाकायदा केंद्रीय चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। एक अक्टूबर को होने वाले मतदान की तारीख बदलने का अनुरोध करते हुए उन्होंने तर्क दिए हैं कि एक अक्टूबर के आगे और पीछे कई छुट्टियां पड़ रही हैं। तीस सितंबर को एक दिन की छुट्टी लेकर मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा घूमने निकल सकता है जिसकी वजह से वोट प्रतिशत कम हो सकता है। कहा यह भी जा रहा है कि दो अक्टूबर को गांधी जयंती की छुट्टी होने के साथ-साथ राजस्थान के मुकाम धाम में आसोज मेला शुरू हो रह है। यह बिश्नोई समाज का बहुत बड़ा मेला होता है। इसमें बिश्नोई समाज के लोग बढ़चढ़कर भाग लेते हैं। इस मेले में भाग लेने के लिए लोग एकाध दिन पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं और मेले में पहले ही पहुंच जाते हैं।
इस बात को देखते हुए अब बिश्नोई समाज के संगठनों ने भी चुनाव की तारीख में बदलाव की मांग करनी शुरू कर दी है। बिश्नोई समाज महासभा के देवेंद्र बुडिया का कहना है कि बीकानेर में गुरु महाराज जंभेश्वर भगवान के समाधि स्थल पर मेला लगता है। वहां लाखों बिश्नोई समाज के लोग जाते हैं। इसलिए मतदान की तारीख बदली जाए। वैसे यह बात सही है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में हर व्यक्ति का योगदान होना चाहिए। प्रत्येक मतदाता अपने मतों का प्रयोग करे, यह सुनिश्चित करना चाहिए, लेकिन अपने देश में यह देखने में आता है कि पैंतीस से चालीस प्रतिशत मतदाता वोट ही डालने नहीं जाते हैं। कई बार तो यह प्रतिशत और भी बढ़ जाता है।
ऐसे में तीस से पैंतीस प्रतिशत वोट पाकर सांसद, विधायक चुन लिए जाते हैं। यह कोई अच्छी बात नहीं है। इनेलो को अजय चौटाला और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली के बयान सामने आते ही विपक्षी दलों ने हमला शुरू कर दिया है। कांग्रेस की नेता कुमारी सैलजा ने तंज कसते हुए कहा है कि छुट्टी पर जाने वाले छुट्टियों की बात कर रहे हैं। कांग्रेस, जजपा, आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना है कि भाजपा हार के डर से चुनाव अभी कुछ दिन टालना चाहती है। पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो समय पर ही मतदान कराने की मांग करते हुए कहा है कि वे अपनी हार मान रहे हैं। जजपा के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी लगभग यही बात कही है। हालांकि यह भी सही है कि इस बार के लोकसभा चुनावों में करीब 65 फीसदी मतदान हुआ था जो वर्ष 2019 के मुकाबले में पांच प्रतिशत कम था। मतदान कम होने से लोकतंत्र कमजोर होता है।
-संजय मग्गू
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