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HomeEDITORIAL News in Hindiहम अपनी बहन-बेटियों का कब जीत पाएंगे विश्वास?

हम अपनी बहन-बेटियों का कब जीत पाएंगे विश्वास?

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जींद के सरकारी स्कूल में 60 छात्राओं के यौन शोषण का मामला कुछ मायने में अचभिंत करने वाला है। ताज्जुब है कि इन छात्राओं का बहुत दिनों से यौन शोषण हो रहा था और स्कूल के किसी भी स्टाफ को इसकी भनक तक नहीं लगी। इन छात्राओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड, केंद्रीय महिला आयोग, हरियाणा महिला आयोग को तो पांच पन्ने का गुमनाम पत्र लिखा, लेकिन स्कूल के 40 कर्मचारियों में से किसी को भी अपने यौन शोषण के बारे में बताने की जरूरत नहीं समझी।

वैसे तो स्कूल का प्रिंसिपल गिरफ्तार कर लिया गया है। जिस काले शीशे लगे केबिन में यौन शोषण करने का आरोप है, उससे काले शीशे हटा दिए गए हैं। लेकिन यह सचमुच ताज्जुब करने वाली बात है कि इन छात्राओं का इतने दिन से यौन शोषण हो रहा था और वे चुप रहीं। अपने मां-बाप, भाई-बहन से लेकर कालेज स्टाफ तक को भनक नहीं लगने दी। इससे एक बात तो जाहिर हो रहा है कि आरोपी प्रिंसिपल ने इन बच्चियों को इतना भयभीत कर दिया था, वे चाहकर भी अपना मुंह नहीं खोल सकीं। वे किसी से अपनी पीड़ा शेयर नहीं कर सकीं। जब अति हो गई, तो उन्होंने किसी को बताने की जगह गुमनाम पत्र लिखा।

वैसे इन बच्चियों का यह काम सराहनीय है। इससे कम से कम बच्चियों का नाम तो दुनिया के सामने नहीं आया। वैसे भी अगर वे हिम्मत करके कालेज स्टाफ या परिजनों को अपने शोषण के बारे में बतातीं, तो भी उनकी पहचान उजागर नहीं होती। बस, यहीं पर जरूरत महसूस होती है अपनी बहन-बेटियों का विश्वास जीतने का। अगर इन बच्चियों को यह विश्वास होता कि उनके परिजन उनके साथ छाती ठोंककर खड़े होंगे और उन्हें गलत नहीं समझेंगे, तो यकीनन वे अपनी त्रासद पीड़ा का साझीदार अपने परिजनों को बनातीं। असल में हमारे समाज की मानसिकता और सोच ऐसी हो गई है कि भले ही स्त्री निर्दोष हो, लेकिन कलंक उसी पर थोपा जाता है। उसी को गलत समझा जाता है। समाज उसी को दोषी समझता है। शायद प्रिंसिपल अपने स्कूल की छात्राओं की इस विवशता को समझता था, तभी तो बेहिचक वह इतनी भारी संख्या में छात्राओं का यौन शोषण कर पाने में सफल हुआ।

वह इस बात को अच्छी तरह से समझता था कि अपनी बदनामी के भय से ये बच्चियां अपना मुंह नहीं खोलेंगी और उसका यह घृणित कर्म जारी रहेगा। हमें इस मर्दवादी सोच से उबरना होगा। आफिस, घर, मोहल्ले-टोले या राह चलते किसी महिला या बच्ची के साथ कुछ गलत होता हुआ दिखे, तो उसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दिखानी होगी। महिलाओं को यह विश्वास दिलाना होगा कि पूरा समाज उनके साथ खड़ा है। अगर उनकी गलती नहीं है, तो घर-परिवार, समाज और सरकार उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के लिए तैयार है। यदि हम ऐसा करने में सफल हो गए, तो इन 60 छात्राओं जैसी स्थिति पैदा नहीं होगी कि वे यौन शोषण की किसी को भनक तक न लगने दें।

-संजय मग्गू

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