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बच्चों को अब कहानियां क्यों नहीं सुनातीं दादी-नानी?

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हमारे देश में वे दिन खत्म हो गए, जब दादी-दादा, नानी-नाना अपने घर के बच्चों को रात में सीने से चिपकाकर कहानियां सुनाया करते थे। कई बार बच्चे कहानियां सुनते-सुनते सो भी जाया करते थे। सुबह उठने पर आधी सुनी कहानी उनके दिमाग में अटकी रहती थी। जब कोई बच्चा दिन में कहानी सुनाने को कहता और दादी या नानी किसी काम में व्यस्त होती थीं, तो वह झट से कह देती थीं कि दिन में कहानी सुनने से मामा रास्ता भूल जाते हैं। दादी, नानी या दादा, नाना को कहानी सुनाने के लिए एक माहौल चाहिए, बच्चों को कहानी सुनने के लिए पूरी एकाग्रता चाहिए। दादी, नानी या दादा, नाना इन कहानियों के माध्यम से अपनी सभ्यता, संस्कृति और रीति-रिवाजों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बहुत ही सहज तरीके से पहुंचा देते थे। ये कहानियां बच्चों की एकाग्रता, कल्पनाशीलता को बढ़ाती थीं।

बच्चा कई बार अपनी कल्पना से खुद ही कहानियां रचकर सुनाता था। बच्चों का मानसिक विकास करने का यह बहुत ही सरल और सर्वमान्य तरीका था। घर के बड़े-बुजुर्ग पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने किस्से-कहानियों के माध्यम से न केवल जीवित रहते थे, बल्कि वे अपने जीवन अनुभव को भी अगली पीढ़ी में संजो देते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अपने घर के बुजुर्गों से कहानियां सुनने वाले बच्चे रहे और न ही बुजुर्गों को इतनी फुरसत रही कि वे अपने बच्चों के साथ समय बिता सकें। जानते हैं, उत्तरी-पश्चिमी यूरोप में एक छोटा सा देश है आयरलैंड। इस देश ने अब तक चार नोबल और छह बुकर पुरस्कार जीते हैं। यहां एक से बढ़कर साहित्यकार पैदा हुए हैं।

आबादी लगभग पचास लाख के आसपास होगी। इतनी कम आबादी वाले देश में इतने नोबल और बुकर पुरस्कार साहित्यकारों ने हासिल किए हैं, तो उसका कारण यह है कि उनकी कहानी सुनने और सुनाने का जुनून। कहानियां सुनना और सुनाना अपनी व्यथा कथा को लोगों तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। इस बाद की पहचान हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीत और लोककथाएं हैं। सदियों से हमारे देश के विभिन्न प्रांतों में लोकगीत प्रचलित हैं। इनकी रचना भी उन महिलाओं ने की थी जो निपट निरक्षर थीं।

घरेलू कामकाज के दौरान, विभिन्न मांगलिक अवसरों और खेती किसानी के कार्य करते हुए महिलाएं गीत गाती हैं। इन गीतों में स्त्री जाति की संपूर्ण व्यथा कथा और उनकी खुशियों का प्रकटयन होता है। हमारे देश में अब लोकगीत गाने या बच्चों को कहानी किस्सा सुनाने का चलन बिल्कुल घट गया है, लेकिन आयरलैंड जैसे देश के गांवों में आज भी संरक्षित है। आयरलैंड सरकार साहित्यकारों, कलाकारों को न केवल 50-57 लाख रुपये तक की कमाई पर आयकर में छूट देती है, बल्कि साहित्यकारों को 25 से 30 हजार रुपये महीने प्रदान करती है। साल 2023 में आयरलैंड सरकार ने किताबों की खरीद पर 1598 करोड़ रुपये खर्च किए थे। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को कहानी-कविताओं की किताबें बैग में रखकर मुफ्त दी जाती हैं।

-संजय मग्गू

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