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कोई कमतर नहीं पुरुष, न ही स्त्री

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यह हर क्रिकेट प्रेमी को मालूम है कि 29 मई को अहमदाबाद में चेन्नई सुपर किंग्स और गुजरात टाइटंस के बीच आईपीएल का फाइनल मैच खेला गया था। मैच की समाप्ति पर एक मजेदार घटना हुई थी जिसको लेकर आज भी सोशल मीडिया पर एक बहस चल रही है, संस्कारी पत्नी बनाम गैर संस्कारी पत्नी। हुआ यह था कि मैच खत्म होते ही रवींद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा दौड़ती हुई स्टेडियम में आई थीं और उन्होंने अपने पति के पैर छुए थे। बस, फिर क्या था? यह वीडियो सोशल मीडिया पर ट्रैंड करने लगा। लोगों ने इस वीडियो को ट्वीट करते हुए संस्कारी पत्नी की खूबियां बताकर गैर संस्कारी महिलाओं को लानतें भेजनी शुरू कर दी। वीडियो के माध्यम से यह बताने की कोशिश की जाने लगी कि उन भारतीय महिलाओं को रिवाबा से सीखना चाहिए जो अपने पति का सम्मान नहीं करती हैं। पति के पैर नहीं छूती हैं। इसके जवाब महिलाओं और पुरुषों ने भी अपने-अपने तीर कमान निकाल लिए और एक तरह से सोशल मीडिया पर ट्वीटर युद्ध और पोस्ट युद्ध शुरू हो गया। दोनों पक्ष के अपने-अपने तर्क थे। बाद में इस सोशल मीडिया युद्ध में टीवी चैनलों ने भी अपनी टांग अड़ा दी।

बाद में यह बहस निजी स्वतंत्रता और अपनी पसंद पर आकर अटक गई। दरअसल, पति के पैर छूना या न छूना, निजी स्वतंत्रता और पसंद से ज्यादा मानसिकता का है। हमारे समाज में एक बहुसंख्यक आबादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर विश्वास करती है। उसकी मानसिकता बन गई है अपने को स्त्री से सर्वोच्च समझने की। संस्कृत का एक शब्द है भर्ता। इसी का अपभ्रंश है भर्तार और इसी भर्तार से भतार शब्द बना है। इस शब्द का उपयोग हिंदी पट्टी के गांव-देहातों में बहुलता से होता है। संस्कृत के भर्ता शब्द का अर्थ होता है भरण पोषण करने वाला, मालिक, स्वामी, पति। जब किसी पुरुष के मन में अपनी पत्नी के प्रति भरण-पोषण करने वाला भाव होगा, तो वह अपने को उच्च समझेगा ही। इस मानसिकता से अब हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी मुक्ति पाने की ओर है।

महिलाएं भी अपनी सार्थकता सिद्ध कर रही हैं। वैसे उन्हें यह सिद्ध करने की जरूरत भी नहीं है और न अतीत में कभी थी।  प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक महिलाएं कभी न पुरुषों से कमतर रही हैं, न कमजोर। समाज और देश के विकास में उनकी हमेशा से ही बराबर की भागीदारी रही है। पति और पत्नी का संबंध सच पूछिए, तो बराबरी का होता है। एक पत्नी अपने पति की सहगामिनी होती है, सहचरी होती है। दोनों में कोई कमतर नहीं होता  है। आप उस युगल की जीवनचर्या को निकटता से देखिए जिसने अपने आप को एक दूसरे से कमतर या उच्चतर मानने की जगह बराबर मान लिया है।

उस युगल के बीच जितना बढ़िया तादात्म्य आपको देखने को मिलेगा, वह पितृसत्ताक व्यवस्था के हिमायतियों में नहीं मिलेगा। चलिए, अगर हम इस मामले को निजी स्वतंत्रता ही मान लें, तो जो अपने पति के साथ बराबरी का व्यवहार करती हैं, उनको छोड़ दीजिए उनके हाल पर। उन्हें ताने मारने की क्या जरूरत है।

संजय मग्गू

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