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चीतों को बसाने का धूमिल होता सपना

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क्या वर्ष 1952 में भारत में विलुप्त घोषित किए चीतों को एक बार फिर से देश में बसाने को लेकर शुरू की गई योजना सफल नहीं होगी? यह सवाल कई चीतों की मौत के बाद उठने लगा है। पिछले 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 72वें जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे। इसका बड़े जोर शोर से प्रचार भी किया गया था। प्रधानमंत्री मोदी ने इन आठों चीतों को कूनो नेशनल पार्क के बाड़े में छोड़ा था जिसका प्रसारण सरकारी और निजी चैनलों ने बड़े जोर-शोर से किया था। उस दिन और उससे पहले के समाचार पत्र भी इन्हीं से संबंधित समाचारों से भरे पड़े थे। इसी साल 18 फरवरी को साउथ अफ्रीका से 12 चीते लाए गए थे। इसे पीएम मोदी की एक बहुत बड़ी उपलब्धि बताई गई थी।

देश के लिए खुशी और गर्व का मौका तब आया, जब नाबीबिया से लाई गई मादा चीता ज्वाला ने 24 मार्च को चार शावकों को जन्म दिया। लेकिन यह खुशी बहुत ज्यादा दिन स्थायी नहीं रही। इसके तीसरे दिन यानी 27 मार्च को नामीबिया से लाई गई मादा चीता साशा की मौत किडनी खराब होने से हो गई। यह भारत में चीता प्रजाति को एक बार फिर से बसाने के सपने को लगने वाला पहला झटका था। इसके बाद तो झटके पर झटके लगे लगे। 23 अप्रैल को साउथ अफ्रीका से आया चीता उदय की मौत हो गई।

नौ मई को तीसरी मौत चीता दक्षा की हुई। दक्षा की मौत का कारण मेटिंग के दौरान दो नर चीतों का उस पर हमला कर देना रहा। इस हमले में वह बुरी तरह घायल हो गई थी और उसे काफी प्रयास के बावजूद बचाया नहीं जा सका। चौथी मौत 23 मई को एक शावक की हुई। इस मौत के सदमे से कूनो पार्क प्रशासन अभी उबर भी नहीं पाया था कि 25 मई को दो और शावकों ने दम तोड़ दिया। कुछ चीतों की मौत का कारण मध्य प्रदेश में पड़ती भीषण गर्मी को बताया गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब चीता प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बनी थी, तो चीतों के पालन-पोषण, उनके लिए अनुकूल पर्यावरण मुहैया कराने आदि की जानकारी और प्रशिक्षण लेने के लिए ढेर सारे अधिकारियों और कर्मचारियों को करोड़ों रुपये खर्च करके विदेश भेजा गया था।

ये अधिकारी और कर्मचारी एक बार नहीं कई बार नामीबिया और साउथ अफ्रीका गए थे। वहां से ट्रेनर भी कई बार आए-गए। इस पर एक मोटी रकम खर्च की गई। तो फिर इतनी रकम खर्च करके इन लोगों ने क्या प्रशिक्षण लिया कि गर्मी के चलते चीतों और उनके शावकों की मौत हो गई। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट इस मामले में अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।

यदि कूनो पार्क और उसके आसपास का वातावरण चीतों के लिए उपयुक्त नहीं है, तो उन्हें यहां रखने की संस्तुति क्यों की गई? आखिर प्रधानमंत्री मोदी और देश की जनता की आशा को इस तरह धूमिल करने करने के पीछे कौन है? इसका मध्य प्रदेश सरकार को पता लगाकर उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। इस मामले में सबकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

संजय मग्गू

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