देश की इन जगहों पर नहीं किया जाता है होलिका दहन, यहां की कुछ अलग हैं मान्यताएं

मध्यप्रदेश के सागर जिले में नहीं होता है होलिका दहन

जब पूरा देश होली का उत्सव मना रहा होता है, तब मध्यप्रदेश का एक जिला है सागर जिसमें स्थित एक गांव में होलिका दहन करना वर्जित माना जाता है। मध्यप्रदेश के हथखोह नामक इस गांव में पिछले 400 वर्षों से होलिका दहन नहीं किया गया है, क्योंकि यहां के लोग इसे देवी के श्राप से जोड़ते हैं। गांव के निवासियों के अनुसार, गांव के घने जंगल में झारखंडन माता का एक प्राचीन मंदिर स्थित है।

सहारनपुर जिले के बारसी गांव में नहीं होता है होलिका का दहन

जब पूरे देश में होलिक दहन का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है, उस समय उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बारसी गांव में इस अनुष्ठान को नहीं किया जाता है। यह परंपरा इस जगह कई वर्षों से चली आ रही है और इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। बारसी गांव के लोगों का मानना है कि यदि यहां होलिका दहन किया गया, तो भगवान शिव के चरण जल जाएंगे, इसलिए इस अनुष्ठान को न करने में भी सभी की भलाई है। हालांकि गांव की महिलाएं आज भी होली से एक दिन पहले इसके निकट स्थित टिकरोल गांव में जाकर होलिका दहन का करती हैं।

राजस्थान के भीलवाड़ा में नहीं होता है होलिका दहन

वैसे तो आमतौर पर लोग होलिका दहन करके त्योहार को धूम-धाम से मनाते हैं. लेकिन राजस्थान के एक गांव में पिछले 70 साल से होलिका दहन नहीं हुआ है। भीलवाड़ा जिले में बने हरणी गांव में एक अनोखी परंपरा से होली मनाई जाती है। इस गांव में चांदी की होली मनाने की प्रथा है। दरअसल इस गांव में 70 साल पहले होलिका दहन के समय आग लग गई थी जिसके कारण कई परिवारों में भी कलह हो गई। जिसके बाद गांव में लोगों ने निर्णय लिया कि इस दिन के बाद कभी भी इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाएगा। उसी समय से होलिका दहन न करने की परंपरा शुरू हुई और आज भी कायम है

छतीसगढ़ के गोंडपेंड्री गांव में नहीं होता होलिका दहन

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का गोंडपेंड्री गांव ऐसा क्षेत्र है जहां सदियों से होलिका दहन नहीं होता है। इस स्थान को लेकर यह मान्यता है में कई सालों पहले होलिका दहन के दिन ही एक युवक को जिंदा जलाने की कोशिश की गई उसी समय से गांव में होलिका दहन न मनाने का निर्णय लिया गया। उसी फैसले की वजह से आज भी इस स्थान पर होलिका दहन न करने की प्रथा कायम है।

एरच जिले में इस वजह से नहीं होता है होलिका दहन

झांसी के पास स्थित एक एरच नाम का कस्बा है, जिसे हिरण्यकश्यप का स्थान माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी गांव में होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता में बैठ गई थी। इस स्थान पर होलिका को देवी के रूप में पूजा जाता है और वहां होलिका दहन की मनाही होती है। मान्यता अनुसार आज भी वह एरच में वह अग्निकुंड मौजूद हैं, जिसमें होलिका की चिता जली थी।

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