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युवाओं में बढ़ती हिंसक प्रवृति के लिए जिम्मेदार कौन?

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फरीदाबाद में पिछले 15 दिनों में मोबाइल की लत ने दो बच्चों की जान ले ली। एक घटना में मोबाइल यूज करने से टोकने पर छोटे भाई ने बड़ी बहन की गला दबाकर हत्या कर दी, तो दूसरी घटना में 13-14 साल की एक नाबालिग लड़की ने अपने 12 साल के भाई की गला घोट कर हत्या कर दी। भाई का कसूर केवल इतना था कि उसने बहन को गेम खेलने के लिए मोबाइल फोन नहीं दिया था। यह सिर्फ अकेली घटनाएं नहीं हैं, कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनमें किसी बालक या किशोर ने छोटी-छोटी बातों पर किसी की जान ले ली या स्वयं मौत को गले लगा लिया। आम तौर पर यह कहा जाता है कि जो पढ़ा लिखा होगा, वह क्राइम की दुनिया से तौबा करेगा पर आज तो पढ़ा-लिखा युवा हो या बिना पढ़ा लिखा, वह हिंसक प्रवृति और अपराध की दुनिया में शामिल होता दिखाई दे रहा है। स्कूली बच्चे हों या फिर कॉलेज जाने वाले युवा, सभी में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति अभिभावकों के साथ साथ समाज के लिए चिंता का विषय बन गई है। टेलीविजन, इंटरनेट और सामाजिक कुरीतियां किशोरों में हिंसक सोच पैदा कर रही हैं। पश्चिमी सभ्यता का बुरा प्रभाव भी युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है।

हिंसक प्रवृत्ति में दूषित वातावरण के साथ साथ खान-पान का महत्व अधिक होता है। पुरानी कहावत है जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन। समाज में मांसाहार, फास्ट फूड तथा मदिरापान, धूम्रपान, नशा की बढ़ती प्रवृत्ति युवाओं के स्वच्छ मन को मलिन कर रही है। अब प्रश्न यह है कि बच्चों तथा युवाओं में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? यह सच्चाई है कि जब से सामूहिक और कुटुंब परिवार एकल परिवार हुए हैं, तब से युवाओं में हिंसक अपराध बोध ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है। पहले सामूहिक परिवार होते थे, उस समय परिवार के बच्चे, युवा कोई भी गलत काम करने से डरते थे, झिझकते थे।

वह यह समझते थे कि अगर उन्होंने कोई भी गलत कार्य किया तो इससे उनके मां-बाप सहित सभी पारिवारिक जनों के मान सम्मान को ठेस पहुंचेगी। समाज में उनकी बदनामी होगी। यह जो डर उनके मन में पैदा होता था, वह उनके सामूहिक कुटुंब परिवार द्वारा शुरू से ही पैदा किए गए और डाले गए संस्कार व अच्छी बातों का ही नतीजा होता था। आज एकल परिवार में मां-बाप अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं, उनके पास अपने बच्चों की गतिविधियों व व्यवहार पर नजर रखने की फुर्सत ही नहीं होती है। इसी का परिणाम है कि आज युवा संस्कारहीन हो गए हैं, अपराध की दुनिया में शामिल हो रहे हैं।

उनके इस व्यवहार में सोशल मीडिया काफी मददगार बन रहा है। बच्चों पर उनके माता-पिता के संस्कार, व्यवहार व आदर्श तथा घर के माहौल व वातावरण का विशेष प्रभाव पड़ता है। बच्चे जैसा देखते हैं, वैसा ही करते हैं। बच्चे क्यों हिंसक हो रहे हैं, अपराध की दुनिया में शामिल हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण मां-बाप ही हैं। वे शुरू से ही बच्चों में संस्कार पैदा नहीं करते हैं, उन पर नजर नहीं रखते हैं। उनके द्वारा शुरू में की गई  छोटी-मोटी गलतियों और घटनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं।

अगर मां-बाप शुरू में ही अपने बच्चों की गलतियों को रोकने की कोशिश करें। उनको गलतियों के दुष्परिणामों के बारे में बताएं तो बच्चे आगे गलती करेंगे ही नहीं। बच्चों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति व अपराध बोध एक चिंता का विषय है। इस पर अंकुश लगना चाहिए। युवा पीढ़ी देश समाज की धरोहर होती है। इसी पर देश का भविष्य निर्भर होता है। अत: युवाओं का शिक्षित होना, उनमें धैर्य, संयम, अनुशासन और श्रेष्ठ संस्कारों का होना बहुत जरूरी है। इन सबको लाने में मां-बाप की विशेष भूमिका होनी चाहिए। बच्चों एवं युवा वर्ग को भटकाव से रोकने के लिए उनके अभिभावकों को बच्चों पर पूरा ध्यान देना चाहिए।

उनसे मित्रवत बर्ताव कर उनकी समस्याओं का सीमा के अंदर ही निदान करना चाहिए। संस्कार, नैतिकता, विनम्रता, सहनशीलता एवं श्रेष्ठ संस्कार ही भटकती युवा पीढ़ी को सही राह दिखा सकती है। शिक्षा कॉलेज देता है, मां बाप से जागरूकता मिलती है। आईआईटी के विद्यार्थियों को इंजीनियर के बारे में पता होता है पर जिंदगी के बारे में कुछ पता नहीं होता है। जिंदगी की शिक्षा जब तक स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़ाई जाएगी, मां-बाप जब तक बच्चों के लिए समय नहीं निकालेंगे, उनके अच्छे बुरे व्यवहार पर नजर नहीं रखेंगे तब तक ऐसे मामले बढ़ते ही जाएंगे।

कैलाश शर्मा

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