अशोक मिश्र
ऋषि जाजलि का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनको वैदिक युग का ऋषि माना जाता है। ऋषि जाजलि का उल्लेख महाभारत में भी आया है। महाभारत में ऋषि जाजलि और काशी के व्यापारी तुलाधार के बीच हुए संवाद की चर्चा की गई है। कहा जाता है कि एक बार जाजलि ने कठोर तपस्या की। वे एक जगह पर स्थिर होकर भगवान की तपस्या करनी शुरू की, तो कुछ दिनों बाद पशु-पक्षियों ने उनके शरीर पर घोसले बना लिए। वे वहां रहने लगे। कुछ दिनों बाद मादा पक्षियों ने अपने-अपने घोसलों में अंडे दिए। जब समय आने पर अंडे फूटे और उनमें से बच्चे निकले। जब बच्चे उड़ने लायक हो गए और काफी दिनों तक अपने घोसले की ओर नहीं लौटे, तो ऋषि जाजलि ने अपनी आंखें खोल दी। उन्होंने आंखें खुलने पर अपनी तपस्या का जो स्वरूप देखा, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें लगा कि उनके जैसा सिद्ध पुरुष शायद इस दुनिया में कोई नहीं है। यह सोचकर उन्हें अपने आप पर और अपनी तपस्या पर गर्व हुआ। वे अहंकार में झूम उठे।
कहते हैं कि तभी आकाशवाणी हुई कि जाजलि अपनी तपस्या पर गर्व मत करो। काशी में रहने वाले व्यापारी तुलाधार के बराबर धार्मिक नहीं हो तुम। यह सुनकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। वे तुलाधार से मिलने के लिए काशी निकल पड़े। काशी पहुंचकर देखा कि तुलाधार बहुत ही साधारण व्यापारी हैं। उन्हें देखते ही तुलाधार ने उठकर उनका स्वागत किया और आकाशवाणी की बात बताई। तुलाधार ने जाजलि को बताया कि वह ईमानदारी के साथ व्यापार करते हैं। किसी के साथ छल नहीं करते हैं। बच्चा हो या बूढ़ा, सबको एक समान मानते हैं। लोगों की हर संभव मदद करते हैं। यही उनकी दिनचर्या है। इस पर जाजलि समझ गए कि सादा जीवन जीना ही धर्म है।