जब जब कारगिल वॉर का नाम लिया जायेगा तब तब विक्रम बत्रा याद आएंगे 7 जुलाई 1999 कभी ना भूले जाने वाली तारीख। इस दिन कारगिल युद्ध में प्वाइंट 4875 चोटी पर फतह के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हुए थे।
यह दिन हम सभी के लिए BLACK DAY के रूप में है। कैप्टन बत्रा ने इस शहादत से पहले पाकिस्तानियों सैनिकों को मार गिराया था।
कैप्टन बत्रा को सेना का ”सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र”से शहादत के बाद सम्मानित किया गया था। बता दे कि आज यानि 9 सितम्बर विक्रम बत्रा की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन उनका जन्म हुआ था। जब कारगिल के वॉर के लिए भारत माता के अमर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा गए थे तब वे केवल 24 साल के थे।
कैप्टन विक्रम बत्रा की जिंदगी की कुछ खट्टी मिट्ठी बातें
इस कैप्टन की कहानी को हर बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग तक सभी को जानना चाहिए। इस वीर सपूत का जन्म 9 सितम्बर 1974 में भारत के पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में हुआ था।
जिसको बच्चपन से ही फ़ौज में जाने का शौक था। यह अक्सर अपने स्कूल के फंक्शन्स में पार्टिसिपेट करते थे और उसमे वीर योद्धा बनते थे।
बत्रा परिवार में दो बेटियों के बाद दो जुड़वा भाइयों ने जन्म लिया था। जिनका बचपन का नाम लव और कुश रखा गया था। आगे चलकर लव को विक्रम और कुश को विशाल नाम दिया गया। दोनों ही भाई जुड़वा थे।
तो यह थी इनकी बचपन की कहानी अब करते है इनकी जवानी की।
जब साल 1999 में चुप चाप पाकिस्तान की सेना ने पहाड़ियों पर घुसकर कब्ज़ा कर लिया था। उस वक्त जब पाकिस्तान सेना को भगाने के लिए कारगिल युद्ध शुरू हुआ तब विक्रम बत्रा हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में अपने घर होली की छुट्टियां लेकर आए थे।
तब उन्हें पता चला कि यह युद्ध हो रहा है तो उनके दोस्त ने उन्हें कहा कि उनको जाना होगा और सुरक्षित और सतर्क रहना होगा।
इसका जवाब देते हुए विक्रम बत्रा ने यह कहा था कि चिंता मत करो या तो तिरंगा फेरा कर लौटूंगा या फिर तिरंगे में लिपट कर लौटूंगा। आज भी लोग उनके यह शब्द याद करते है।
क्यों दिया गया ”मरणोपरांत महावीर चक्र ?
जब यह लड़ाई चल रही थी तब पाकिस्तानी सेना लगातार भयानक गोलाबारी कर रही थी उसी बीच कैप्टन विक्रम बात्रा, दुश्मन तक पहुंच गए।
अब इसके बाद उन्होंने अपने साथी कैप्टन अनुज नैय्यर और दूसरे वीर जवानों के साथ मिलकर पाकिस्तान के बंकर और पोस्ट को नष्ट कर दिया।
इसी बीच 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने पाकिस्तान के पांच जवानों को मार गिराते हुए देश को सर्वोच्च बलिदान दे दिया।
इसी सर्वोच्च बलिदान और इस पराक्रम के लिए शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को वीरता का सर्वोच्च सम्मान, ”मरणोपरांत परम वीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
इसके साथ ही उनके शहीद साथी कैप्टन अनुज नैय्यर को वीरता का दूसरा सर्वोच्च सम्मान, ”मरणोपरांत परम वीर चक्र” दिया गया