महिला आरक्षण बिल बुधवार को लोकसभा में पारित हो गया। भाजपा के बहुमत को देखते हुए लोकसभा में बहस सिर्फ खानापूरी तक ही रही। उसमें आए सुझाव पर भी विचार होने की उम्मीद नहीं है। संसद में भाजपा का बहुमत है, इसलिए बिल तो पास होना ही था। बिल में महिलाओं को संसद और विधान सभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था है। महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था, लेकिन पारित नहीं हो सका था।
बार− बार ये बिल संसद में आया किंतु राजनीतिक दलों की इच्छाशक्ति न होने और अड़ंगेबाजी के कारण ये संसद के दोनों सदनों में पारित नहीं हो पाया। अब भाजपा के बहुमत और उसके रवैये से लगता है कि ये बिल पास हो जाएगा। किंतु देश में महिलाओं की आबादी आधी है। आधी आबादी को उनका आधा हिस्सा क्यों नहीं दिया जा रहा। 33 प्रतिशत हिस्सा देने की बात क्यों हो रही है।
33 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल ही संसद में 27 साल से अटका है। आधे हिस्से की बात चली तो शायद ये बिल कभी पास ही नहीं होता। दूसरे संसद और विधान सभाओं में ही क्यों सभी नौकरी और राजकीय सेवाओं में महिलाओं को आधा हिस्सा क्यों नहीं दिया जाता? उसे उसके हिस्से का आधा क्यों नहीं सौंपा जा रहा?
संसद की नई इमारत में कार्यवाही मंगलवार से शुरू हुई। पहले दिन कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिला आरक्षण से जुड़ा विधेयक पेश किया। इस विधेयक में संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। महिला आरक्षण के लिए पेश किया गया विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है। संसद के दोनों सदन, लोकसभा और राज्यसभा में इस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पास होना होगा। फिर जनगणना के बाद परिसीमन की कवायद की जाएगी।
परिसीमन में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीमाएं तय की जाती हैं। पिछला देशव्यापी परिसीमन 2002 में हुआ था। उसे 2008 में लागू किया गया था। परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भंग होने के बाद महिला आरक्षण प्रभावी हो सकता है। अभी ऐसा लग रहा है कि 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण का लागू होना संभव नहीं है। ये आरक्षण लागू हो जाने के बाद महिला आरक्षण केवल 15 साल के लिए ही वैध होगा, लेकिन इस अवधि को संसद आगे बढ़ा सकती है।
ज्ञातव्य है कि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें भी केवल सीमित समय के लिए ही थीं, लेकिन इसे एक बार में 10 साल तक बढ़ाया जाता रहा है। सरकार की ओर से पेश विधेयक में कहा गया है कि परिसीमन की हर प्रक्रिया के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन होगा। इसका विवरण संसद बाद में निर्धारित करेगी।
सीटों के रोटेशन और परिसीमन को निर्धारित करने के लिए अलग एक कानून और अधिसूचना की जरूरत होगी। स्थानीय निकायों, जैसे पंचायत और नगर पालिकाओं में भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए पहले ही आरक्षित हैं। इनमें हर चुनाव में सीटों का आरक्षण बदलता रहता है। यानी रोटेशन होता है। अनुसूचित जाति के लिए सीटें किसी निर्वाचन क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षित की जाती हैं। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।
पहले बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था। इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिए आवंटित की जा सकती हैं। अब आरक्षण लागू करने के बाद राजनीति में शिक्षित और योग्य महिलाएं आकर देश को नई दिशा देंगी।
अशोक मधुप