यह शुभ संकेत नहीं है कि हरियाणा के बच्चों में पढ़ने की योग्यता और गणितीय कौशल पिछले कुछ सालों से लगातार घट रहा है। बच्चे अपनी ही कक्षा की किताबें ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं। वे गणित के सवाल हल करने में सक्षम नहीं हैं। देश और प्रदेश में जैसे-जैसे सुविधाओं में बढ़ोतरी होती जा रही है, पढ़ने और पढ़ाने के नए-नए तरीके ईजाद हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हों, तो यह चिंताजनक बात है। आज से कुछ दशक पहले तक स्कूलों में बच्चों को सामूहिक रूप से किताब का कोई भी पन्ना पढ़ने को कहा जाता था। एक बच्चा किताब का कोई भी अंश पढ़ता था और कक्षा के सारे बच्चे उसे दोहराते थे।
इसका फायदा यह होता था कि बच्चों को शब्द और वाक्य रट जाता था। वे किसी वाक्य को कैसे पढ़ना है, यह जान पाते थे। उनका उच्चारण भी सुधरता था। वे एक दूसरे की देखा-देखी किताब खोलकर पढ़ने का अभ्यास करते थे। इसी तरह गिनती और पहाड़े भी सामूहिक रूप से रटाए जाते थे। उनकी भाषा पर पकड़ मजबूत हो, उनका शब्द ज्ञान बढ़े, इसके लिए उन्हें डिक्टेशन (इमला) दिया जाता था, ताकि वे सही शब्द लिखना और बोलना सीख जाएं। उन्हें नकल और सुलेख भी लिखने को कहा जाता था, ताकि उनकी हैंडराइटिंग सुधर सके।
जिस बच्चे की हैंडराइटिंग खराब होती थी, उसे सुधारने के लिए हलके-फुलके दंड भी दिए जाते थे। लेकिन जब से आधुनिक शिक्षा प्रणाली लागू हुई है, तब के इमला, सुलेख जैसी बातें हवा हो गई हैं। यही वजह है कि हरियाणा के स्कूलों में वर्ष 2018 में तीसरी कक्षा के बच्चा का पठन कौशल 46.4 प्रतिशत था, वह वर्ष 2022 में 31.5 प्रतिशत रह गया। पिछले दिनों मनोहर लाल सरकार ने चार हजार प्लेवे स्कूलों में पढ़ने वाले तीन से पांच साल तक बच्चे का एक सर्वे करवाया है।
सर्वे की जो रिपोर्ट आई है, उसने सरकार के माथे पर शिकन ला दिया है। सरकार ने फैसला किया है कि अब यह सर्वे हर साल कराया जाएगा और बच्चों के पढ़ने की योग्यता और गणितीय कौशल को सुधारने का हर संभव प्रयास किया जाएगा। सर्वे से खुलासा हुआ है कि समग्र रूप से बच्चों के पढ़ने और गणितीय कौशल में 15 प्रतिशत की कमी आई है। आंकड़े के मुताबिक पांचवीं कक्षा के बच्चों का गणितीय कौशल 53.9 प्रतिशत वर्ष 2018 में था, लेकिन पिछले पांच सालों में यह घटकर 41.8 प्रतिशत रह गया है।
पिछले पांच सालों में पांचवीं कक्षा के बच्चों के गणितीय कौशल में 12 प्रतिशत की कमी आई है। इसके लिए जहां शिक्षक जिम्मेदार हैं, वहीं मां-बाप भी बराबर के दोषी हैं। स्कूलों में अध्यापक बच्चों की शिक्षा पर ध्यान कम देते हैं। वहीं मां-बाप भी अपने बच्चों को स्कूल भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है।