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बोधिवृक्ष : असली और नकली की पहचान

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समय किसी का एक सा नहीं रहता है। इसी को जीवन कहते हैं। आदमी जब सुखी होता है, तो वह अपने अतीत की ओर नहीं देखता है। दुख के बारे में तो सोचता ही नहीं है। जब उस पर दुखों का पहाड़ टूटता है, तो उसे अच्छी बातें भी बुरी लगती हैं। एक बार की बात है। किसी नगर में एक जौहरी रहता था। उसका असामयिक निधन हो गया, तो उसका परिवार संकट में आ गया। जब तक जौहरी की दौलत रही, परिवार अपना गुजारा करता रहा।

लेकिन कुछ समय बाद ऐसा दिन भी आया जब उसके पास कुछ नहीं बचा। जौहरी की पत्नी ने गले से एक नीलम का हार निकलकर बेटे को बाजार भेज दिया और कहा कि यह हाल लेकर अपने चाचा के पास जाओ और इसे बेच दो। लड़का हार लेकर अपने चाचा के यहां गया। चाचा ने हार को अच्छी तरह से जांचने-परखने के बाद कहा कि बेटा! मां से कहना कि अभी बाजार मंदा जा रहा है, तो इसे तब बेचना जब बाजार तेज हो। उसने लड़के को कुछ रुपये भी दिए। इसके बाद कहा कि कल से तुम काम पर आ जाओ।

लड़का दुकान पर आकर काम सीखने लगा। देखते ही देखते कई महीनों में वह हीरे-जवाहरात का अच्छा पारखी हो गया। लोग दूर-दूर से अपने जेवर लेकर परखने के लिए लेकर आने लगे। एक दिन उसके चाचा ने कहा कि बेटा, अपनी मां से कहना कि अब बाजार तेज है, वह चाहें तो बेच दें। लड़का घर चला गया और थोड़ी देर बाद खाली हाथ लौट आया। उसने अपने चाचा से कहा कि वह हार तो नकली है।

इस पर चाचा ने कहा कि जब तुम पहली बार हार लेकर आए थे, यदि उस समय बताता कि हार नकली है, तो तुम्हें बुरा लगता। तुम सोचते की आज तकलीफ में हैं, तो हमारी चीज को नकली बता रहे हैं। अब तुम खुद सच्चाई से वाकिफ हो।

अशोक मिश्र

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