देश रोज़ाना: पांच राज्यों में सत्ता संग्राम की शुरुआत हो चुकी है। चुनाव आयोग ने चुनाव की तिथियां घोषित कर दी हैं। इसके साथ ही विधिवत राजनीतिक दलों ने हुंकार भरना शुरू कर दिया है। वैसे तो पिछले दो महीने से राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनावी बयार बह रही थी। राजनीतिक दल रैलियां, जनसभाएं कर रहे थे। तीन राज्यों में मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस ही आमने-सामने हैं। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ही तय करेंगे कि अगले साल होने वाले लोकसभा का क्या रुख होगा। भाजपा ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में केंद्रीय मंत्रियों को उतारकर नई रणनीति अपनाई है।
छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के सामने अपनी सरकार बनाए रखने की चुनौती है, तो वहीं मध्य प्रदेश में भाजपा को हराकर अपनी सरकार बनाने की है। दोनों दलों के अपने-अपने दावे हैं और जीत के अपने-अपने तर्क। मध्य प्रदेश में भाजपा के सामने चुनौती यह है कि वहां एक तो उसे एंटी इनकंबेसी से निपटना होगा, वहीं प्रदेश भाजपा संगठन में कई गुटों को एक करना सबसे बड़ी चुनौती है। मध्य प्रदेश भाजपा में असंतोष कुछ ज्यादा ही है क्योंकि वहां तीन गुट सक्रिय हैं। हालात कैसे हैं, इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश के मुखिया जनसभा में लोगों से पूछते हैं कि वे चुनाव लड़ें या नहीं। यह तो तय हो चुका है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार सीएम चेहरा नहीं हैं। यही हाल राजस्थान का है। वहां भी भाजपा ने किसी को सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है। वसुंधरा राजे सिंधिया अलग नाराज बैठी हैं। पिछले एक महीने से राजस्थान में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम से कभी तो यह लगता था कि वसुंधरा राजे को भाजपा हाईकमान ने मना लिया है। उसके अगले दिन फिर लगने लगता था कि वसुंधरा नाराज हैं। वैसे राजस्थान में कांग्रेस में भी दो गुट हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई भी मौका चूकते नहीं हैं, लेकिन फिलहाल दोनों ने एक दूसरे पर सार्वजनिक रूप से हमला करना बंद कर दिया है। इसका मतलब यह नहीं है कि दोनों में पक्के तौर पर समझौत हो गया है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में दो गुट एक दूसरे के आमने सामने हैं। ऐसी हालत में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव परिणाम क्या होंगे, यह कह पाना बहुत मुश्किल है। यदि हम लोकसभा के संदर्भ में बात करें, तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को मिलाकर कुल 65 लोकसभा सीटों में से 62 पर भाजपा काबिज है। तेलंगाना और मिजोरम में मुख्य मुकाबला तो क्षेत्रीय दलों के बीच है, लेकिन इसमें कांग्रेस और भाजपा सहयोगी दलों की भूमिका में हैं। इन दोनों राज्यों की हार-जीत का उतना मतलब नहीं है जितना कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ का है।
-संजय मग्गू