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HomeEDITORIAL News in Hindiपथ निष्कंटक करना ही सच्ची सेवा

पथ निष्कंटक करना ही सच्ची सेवा

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देश रोज़ाना: सेवा का भाव यदि मनुष्य में हो, तो वह अपना जीवन सुखी रखने के साथ-साथ दूसरों का भी जीवन सुखी बना सकता है। दीन-दुखियों की सेवा, उनके प्रति दया का भाव रखना, पशु-पक्षियों की देखभाल करना, इंसान का मानवीय गुण है। हालांकि, क्रूरता, कटुता, हिंसा भी इंसानी गुण है, लेकिन यदि मनुष्य चाहे तो इन बुरे गुणों से छुटकारा पा सकता है। इसके लिए प्रयास करना होगा। प्राचीनकाल में हुए आचार्य बहुश्रुत अपने शिष्यों में मानवीय गुणों का विकास करने का प्रयत्न करते थे। उनका प्रयास था कि समाज में अच्छे गुणों का विकास किया जाए, ताकि यह समाज बुराइयों से दूर रहे।

एक बार की बात है। उनके विद्यार्थियों का शिक्षा सत्र समाप्त हो रहा था। उन्होंने आश्रम के तीन योग्य छात्रों को बुलाकर कहा कि कल सुबह तुम तीनों मेरे घर आना। वहां तुम्हारी परीक्षा लेकर तुम्हें शिक्षा पूरी करने का प्रमाण पत्र दिया जाएगा। यह सुनकर तीनों शिष्यों ने सहमति से सिर हिलाया और अपने अध्ययन में लग गए। इसके बाद उन्होंने सुबह उठते ही आश्रम से घर के बीच जगह-जगह पर कांटे बिखेर दिए। उन कांटों की वजह से किसी का निष्कटंक घर तक पहुंच पाना संभव नहीं था।

तीनों शिष्य सुबह उठे। नहाया-धोया, पूजा पाठ किया और गुरु के घर की ओर चल पड़े। एक शिष्य के पैरों में कांटे गड़े, तो वह जल्दी जल्दी गुरुजी के घर पहुंच कर बैठकर कांटा निकालने लगा। दूसरा छात्र पहला कांटा गड़ने के बाद बच बचकर चलने लगा और गुरु जी के घर पहुंच गया। तीसरे शिष्य ने जब मार्ग में कांटे देखे, तो उसने पेड़ की टहनी को तोड़ी और झाड़ू की तरह राह के कांटों को बुहार कर किनारे कर दिया। बहुश्रुत दूर से यह सब देख रहे थे। उन्होंने उस शिष्य को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम जरूर गुरुकुल का नाम रोशन करोगे।

-अशोक मिश्र

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