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लुटी-पिटी जनता तक मानवीय मदद पहुंचाना बहुत जरूरी

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देश रोज़ाना: पिछले पंद्रह दिनों से चल रहे हमास और इजराइल युद्ध के बीच पहली बार राहत भरी खबर आई है। मिस्र ने गाजा के लोगों को मानवीय मदद पहुंचाने के लिए राफाह बॉर्डर खोल दिया है। इसके चलते राफाह बॉर्डर से होकर दुनिया भर से भेजी गई अन्न, दवाइयां और अन्य वस्तुओं से भरे ट्रक गाजा की ओर बढ़ चले हैं। उम्मीद है कि जल्दी ही यह राहत सामग्री भूख, प्यास और दवाइयों के अभाव में जी रही फिलिस्तीन की जनता को मुहैया हो सकेगा। पिछले दिनों इजरायल-हमास युद्ध के बीच संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने गाजा पट्टी में तेजी से मानवीय मदद पहुंचाने का आग्रह किया था।

 फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से फोन पर बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मानवीय सहायता पहले की तरह पहुंचाने का आश्वासन दिया था। भारत ने हमेशा संकटग्रस्त और गरीब देशों की मदद की है। बाढ़, सूखा, भूकंप या महामारी के दौरान भारत ने हमेशा आगे बढ़कर दुनिया की मदद की है। यह भारत की आजादी के बाद से ही नीति रही है। जब भी जरूरत पड़ी है, भारत ने अपनी क्षमता भर मदद करने में कभी कोताही नहीं बरती है। वैसे गाजा और इजराइल ही नहीं यूक्रेन और रूस में युद्ध के चलते इन देशों की आम जनता की जो हालत है, उसके प्रति कोई भी मानवीय संवेदना से भरा हुआ व्यक्ति सहानुभूति ही रखेगा। यह सही है कि हमास जैसे आतंकी संगठन ने इजराइल के खिलाफ युद्ध छेड़ने की पहल की। उसने काफी संख्या में इजराइली लोगों को मार दिया।

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी जनता को मजबूत दिखाने और दुनिया में अपनी धाक जमाने के लिए गाजा पर हमला करके मुंहतोड़ जवाब दिया। दुनिया भर के देश इस युद्ध में किसी न किसी पक्ष में खड़े हैं। कुछ देश ऐसे भी हैं जो न इस पक्ष में हैं, न उस पक्ष में। उनकी रुचि सिर्फ इस बात में है कि इजराइल और गाजा की जनता को किस तरह राहत पहुंचाई जाए। वैसे किसी भी पक्ष में खड़े देश भी दोनों हिस्सों की जनता को किसी भी तरह की तकलीफ पहुंचाने के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जब भी युद्ध होता है, उसका खामियाजा उस देश की जनता को ही भुगतना पड़ता है। युद्ध तो आम जनता की इच्छा से होते नहीं हैं। यह तो शासकों और आतंकी संगठन के प्रमुख कर्ताधर्ताओं की कुत्सित नीतियों और कार्यक्रमों का परिणाम होते हैं।

अगर दुनिया भर में कहीं भी होने वाले युद्ध की सम्यक समीक्षा की जाए, तो यही तथ्य उभरकर सामने आता है कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति युद्ध नहीं चाहता है। उस पर युद्ध थोपे जाते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमास के क्रूर हत्यारों की वजह से युद्ध छिड़ा, लेकिन गाजा और इजराइल की निर्दोष जनता की इसमें क्या भूमिका रही है? कुछ भी नहीं। लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान उसे ही उठाना पड़ा। मिसाइलें, ड्रोन या तोपों के मुंह से निकले गोले तो यह नहीं देखते हैं कि जहां उसे फटना है, वहां निर्दोष हैं या अपराधी। गोलियां सिर्फ सीना छलनी करना जानती हैं, वह दोषी या निर्दोष नहीं पहचानती हैं। यही हमेशा युद्ध के दौरान होता आया है। ऐसे में जरूरत यह है कि लुटी-पिटी जनता की ज्यादा से ज्यादा मदद की जाए, उन्हें राहत पहुंचाई जाए।

– संजय मग्गू

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