Monday, December 23, 2024
16.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiकहीं हम हंसना-खिलखिलाना भूल तो नहीं रहे

कहीं हम हंसना-खिलखिलाना भूल तो नहीं रहे

Google News
Google News

- Advertisement -


हमारी जीवन शैली ने हमसे हंसना छीन लिया। यदि यही स्थिति रही तो हमारी भावी पीढ़ी हंसना भूल जाएगी। अच्छा आप खुद सोचकर देखिए कि पिछली बार कब आप ठहाका लगाकर हंसे थे। हंसने की जैसे हमारे पास फुरसत ही नहीं है। यही वजह है कि शहरों में अब लॉफिंग क्लब या ग्रुप बनने लगे हैं। लॉफिंग क्लब या ग्रुप में शामिल लोग किसी निश्चित जगह पर निश्चित समय पर जमा होते हैं। यह लोग चुटकुले सुनाकर या भौंड़ी शक्लें बनाकर एक दूसरे को हंसाने की कोशिश करते हैं। लॉफिंग क्लब या ग्रुप में ज्यादातर सीनियर सिटीजन्स होते हैं। इसका कारण यह है कि ये अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर होते हैं।

बच्चों के पास इतनी फुरसत ही नहीं होती है कि वे इनका ख्याल रख सकें। अगर फुरसत है भी, तो वे अपने आप में मस्त हैं। उन्हें इस बात का कतई एहसास ही नहीं होता है कि उनके मां या बाप को उनकी जरूरत है। जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर उनका ख्याल रखना उनका कर्तव्य है। साठ से ऊपर पहुंचते-पहुंचते ज्यादातर बुजुर्ग अपने जीवन साथी से महरूम हो जाते हैं। ऐसे में अकेलापन काटने लगता है।

जीवन साथी होने पर थोड़ा सहारा रहता है। वे अपने सुख-दुख एक दूसरे से शेयर कर लेते हैं। आपस में चुहुल भरी हरकतें करके अपने तनाव को कम कर सकते हैं। लेकिन जब साथी जुदा हो जाता है, तो जीवन में अंधेरा छा जाता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि कोई उनके साथ हो जो उनके अकेलेपन को दूर करने में मददगार हो। असल में कुछ लोग समझते हैं कि हमने अपने मां या पिता या दोनों के लिए घर में टीवी, म्यूजिक सिस्टम या दूसरी सुख-सुविधाएं मुहैय्या करा दी है, अब उनके साथ बैठकर बातें करना कोई जरूरी नहीं है। दरअसल, बुजुर्ग ही नहीं, बच्चे, जवान और बूढ़े सभी हंसना, खिलखिलाना कम करते जा रहे हैं। आदमी हंसता कब है?

जब कई लोग हों, वे कुछ ऐसी हरकतें या बातें करें जिससे हंसी आए। बरबस हंसी निकल जाए। जब जीवन के किसी हिस्से में आदमियों की जुटान ही नहीं है, तो हंसना खिलखिलाना कैसा? विडंबना यह है कि आज लाफिंग क्लब या ग्रुप बन रहे हैं। हो सकता है कि कल हंसना और खिलखिलाना सिखाने के लिए स्कूल या ट्रेनिंग सेंटर खोलने पड़े। लेकिन समाज अभी इतना निराश नहीं हुआ है कि ऐसी नौबत आए। हंसना, खिलखिलाना, मुस्कुराना हमारा आदिम स्वभाव है। जब मनुष्य नंगा था, भूखा था, कबीलों में रहता था, तब भी हंसता था, मुस्कुराता था, खिलखिलाता था।

सामूहिक नृत्य, गायन, वादन और मंचन उसके आमोद-प्रमोद के साधन थे। वह इस दौरान ठहाके लगाता था। नाचते समय उसका मन कितना प्रसन्न होता था, यह बताने की जरूरत नहीं है। समूह या अकेले में नाचकर तो देखिए, कितना तनाव कम हो जाता है। हालात कितने खराब हो चले हैं कि बच्चों के पास समय ही नहीं है, हंसने, खिलखिलाने या धमाचौकड़ी मचाने का। उनके पास तो अब समय ही कहां बचा है। मां-बाप ने अपनी इतनी ज्यादा अपेक्षाएं उनके सिर पर लाद दी हैं कि वे बेचारे उसी में दबे जा रहे हैं। उनकी स्वाभाविक मुस्कान तक उनसे छीन ली गई है। यदि बच्चों, बूढ़ों और जवानों से हंसी छीन ली गई, तो प्रकृति के भी खिलखिलाने और मुस्कुराने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

srinagar-freezes:श्रीनगर में न्यूनतम तापमान -7 डिग्री, डल झील जमी

सोमवार को(srinagar-freezes:) कश्मीर घाटी में भीषण शीतलहर के चलते डल झील की सतह जम गई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, शहर में...

Nepal couple full story | see full detail

https://deshrojana.com/india/satta-matka-result-how-to-make-jodi-in-satta-king/ https://deshrojana.com/latest/delhi-weathertemperature-in-delhi8-6-degrees-celsius/

भारत और चीन उपयुक्त रास्ते पर, परंतु भरोसा जल्दबाजी

शगुन चतुर्वेदीभारत और चीन पांच साल बाद सीमा विवाद समाधान हेतु गठित विशेष प्रतिनिधिमंडल की उच्च स्तरीय वार्ता पिछले दिनों संपन्न हुई। यह 23वीं...

Recent Comments