याद कीजिए वह विकट कोरोना काल, जब हर कार्यक्षेत्र को मंदी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। लाखों लोग एक झटके में रोजी-रोटी गंवा बैठे थे। उद्योग-धंधे लगभग चौपट हो गए थे। रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदारों, आॅटो रिक्शा चालकों एवं दिहाड़ी मजदूरों के सामने परिवार के भरण-पोषण की चुनौती मुंह बाए खड़ी थी, उसी घड़ी में प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना की शुरुआत हुई, जिसके तहत केंद्र सरकार ने लोगों की ठहरी हुई जिंदगी को एक नया जीवन देने का कार्य किया। जून 2020 में शुरू हुई प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना को तीन साल पूरे हो गए हैं। ऋण की राशि भले ही दस-पंद्रह हजार रुपये रही हो, लेकिन लाखों लोग एक नए हौसले के साथ फिर से अपने पांव जमाने में कामयाब हो गए। इंदौर (मध्य प्रदेश) के सदाशिव फूलों की रेहड़ी लगाते हैं। पीएम स्वनिधि योजना ने उन्हें बहुत सहारा दिया। वह बताते हैं कि आज उनका बेटा जिस स्कूल में पढ़ता है, उसकी सालाना फीस 90 हजार रुपये है।
भोपाल में रेहड़ी पर आर्टिफिशियल ज्वेलरी बेचने वाली रेखा श्रीवाम कहती हैं कि स्वनिधि योजना ने न सिर्फ उन्हें आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि दिल्ली घूमने का उनका सपना भी इसी के बदौलत साकार हो गया। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में बैग्स का व्यापार करने वाले राजेंद्र मित्तल ने स्वनिधि योजना से ऋण लेकर अपने कार्य को विस्तार दिया। वह कहते हैं, अब हमारे पास हापुड़ समेत आसपास के कई जिलों के दुकानदार माल खरीदने आते हैं। अहमदाबाद (गुजरात) में फलों के जूस की रेहड़ी लगाने वाले पप्पू यादव को इस ऋण के लिए कहीं जाना तक नहीं पड़ा। नगर निगम के अधिकारियों ने खुद रेहड़ी पर आकर फॉर्म भरवाया और दो दिनों के भीतर पैसा उनके बैंक खाते में आ गया। वह कहते हैं कि रेहड़ी पर पीएम स्वनिधि योजना का बोर्ड लगा होने की वजह से अब कोई परेशान भी नहीं करता। योजना के तीन साल पूरे होने के अवसर पर गुरुवार को केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप पुरी ने एक पुस्तक के विमोचन के साथ-साथ स्वनिधि मोबाइल ऐप भी लांच किया, जिस पर ऋण के जरूरतमंद लोगों को एक ही प्लेटफार्म पर सारी जानकारियां उपलब्ध कराई जाएंगी।
संजय मग्गू