देश रोज़ाना: दिवाली का त्यौहार है। ऐसे में कुछ लोग पूजा की तैयारियों करेंगे तो वहीं कुछ लोग सट्टे में बाजी लगाएंगे। दिवाली के समय में सट्टा खेलना कुछ जगहों पर शुभ माना जाता है। अब एक प्रश्न यहां यह खड़ा होता है कि सट्टे जैसे खेलों पर क़ानूनी रूप से बैन लगाया हुआ है लकिन फिर भी लोग बेखौफ होकर सट्टा खेलते है। दिवाली के समय में लोग बहुत मोटा पैसा लगाकर सट्टा खेलते है। जो लोग यह सट्टा हार जाते है उनकी दिवाली बुरी जाती है और जो लोग सट्टा जीत जाते है उनकी बल्ले- बल्ले हो जाती है।
सट्टा खेलने का यह रिवाज पुराने समय से ही चला आ रहा है। लोग पहले के समय में भी सट्टा खेलते थे और बाजी पर महल, रथ और सोना- चांदी लगाते थे। और बहुत से लोग तो अपनी पत्नी तक को भी सट्टे पर लगाकर हार जाते थे। पत्नियों को सट्टे पर लगाना भी एक अलग तरह का प्रचलन था। कुछ लोग अपनी पत्नियों को सट्टे पर तब लगाते थे तब उनके पास कुछ नहीं होता था। और बहुत से लोग अपनी पत्नियों को सट्टे पर इसीलिए लगाते थे ताकि वह अपना रुतबा दिखा सके।
सट्टा एक ऐसा खेल है। जिसे एक बार खेलने भर मात्र से ही लोगों को इस खेल की लत जाती है। और चाहकर भी इस खेल से बाहर नहीं आ पाते है। यह भी एक कारण होता था उस समय लोग अपनी पत्नियों को ही दाव पर लगा देते थे।
ऐसा माना जाता है कि स्त्रियां घर की लक्ष्मी होती है। और उनके ही होने से घर में बरकत होती है। धन में वृद्धि होती है। इसका एक और उदाहरण महाभारत काल का भी है। जब युधिष्ठिर सबकुछ हार गया था तो उसने अपनी पत्नी को दाव पर लगा दिया था और उसे भी हार गया था।