देश रोज़ाना: विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहाँ एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग साढ़े छह करोड़ आवारा कुत्ते हैं जो अपने नुकीले दाँतों से प्रत्येक वर्ष लाखों बच्चों, वृद्धों, महिलाओं को सबसे ज्यादा निशाना बनाते हैं। भारत में होने वाली रेबीज संक्रमण की मौतों में 97 प्रतिशत कुत्तों के काटने से होती है। विगत वर्ष 2022 में भारत में लगभग 18 लाख लोगों को कुत्तों ने काटकर गंभीर घायल किया था। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार सबसे अधिक महाराष्ट्र में तीन लाख 46 हजार, तमिलनाडु में 3,30246, उत्तर प्रदेश में 2,20, 900, गुजरात में एक लाख 69 हजार, आंध्र प्रदेश में 1,69,378, उत्तराखंड में 1.24 लाख, पश्चिमी बंगाल में 1,62624, पंजाब में एक लाख से अधिक, मात्र चंडीगढ़ में 42 हजार लोगों को आवारा कुत्तों ने अपना निशाना बनाया।
राजस्थान में भी पचास हजार लोग आवारा कुत्तों से घायल हुए। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों में बीस से तीस हजार लोग इन आवारा कुत्तों के काटने से जख़्मी हुए हैं जिसमें 40 प्रतिशत मौतें रेबीज से हो रही हैं। देश भर में कुत्तों के काटने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है, जबकि 2021 में यह आंकड़ा मात्र नौ से दस लाख लाख के बीच था जो अब बढ़कर दुगुना होगया है। कुत्तों की काटने से प्रत्येक वर्ष लाखों लोग असमय काल के गाल में समा गए। सब से अधिक कुत्ते काटने की वारदात महाराष्ट्र में होती हैं। इसके बाद तमिलनाडु शीर्ष पर है। कोई भी दिन ऐसा नहीं होता है, जब कुत्तों के काटने के समाचार न छपते हों। अभी 23 अक्टूबर 2023 को अहमदाबाद में बाघ बकरी चाय के स्वामी पराग देसाई को कुत्तों ने बुरी तरह काटा जिस कारण उनकी मौत हो गई।
कानून के अनुसार इन आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने और पकड़ने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों की है जिसके लिए एबीसी (एनिमल बर्थ कंट्रोल) कानून है जिसके तहत इन आवारा कुत्तों को पकड़ कर उनकी नसबंदी की जाती है। पशु कल्याण संगठनों, निजी व्यक्तियों के समर्थन और सहायता से आवारा कुत्तों की नसबंदी करके कुत्तों की आबादी को कम करने के लिए पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 38 के तहत पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 अधिनियमित किया गया था। साथ ही स्थानीय निकाय के वरिष्ठ अधिकारी को इस संबंध में प्रभावी कार्यवाई के लिए अधिकृत किया गया था। देश भर 247 नगर निगमों, 1500 नगर पालिकाओं तथा दो हजार से भी अधिक नगर पंचायतों के दफ्तरों में यह कानून केवल पत्रावलियों में तो मौजूद है, लेकिन यथार्थ के धरातल पर क्रियान्वन शून्य है, यही कारण है कि देश भर में आवारा कुत्तों की संख्या और काटने की वारदात में निरंतर वृद्धि हो रही है जो चिंता का विषय है।
इसमें संदेह नहीं कि सभी कुत्ते रेबीज से संक्रमित होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को कोई आवारा कुत्ता काट लेता है और सात से दस दिन तक जीवित रहता है तो इस का अर्थ है कि अमुक कुत्ता रेबीज संक्रमित नहीं है। परन्तु कुत्ता काटने का भय किसी भी व्यक्ति के शरीर में सिहरन दौड़ाने के लिए पर्याप्त है। अन्य जानवरों के काटने से भी रेबीज का खतरा होता जिसमें बिल्ली, बंदर, लोमड़ी, चमगादड़, लाल पांडा आदि प्रमुख हैं। कुत्तों द्वारा काटने की पीड़ा अत्यंत दुखद होती है।
कुत्ते, बंदर आदि के काटने में लगाया जाना वाला एंटी रेबीज इंजेक्शन सरकारी अस्पतालों में सरकर द्वारा उपलब्ध कराया जाता है जिसकी बाजार में कीमत दो सौ से तीन सै रुपये होती है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारें इन एंटी रेबीज इंजेक्शन बनाने और खरीदने पर करोड़ों रुपये खर्च करती है। अस्पतालों में उन मरीजों का उपचार किया जाता है जो कुत्तों के काटने से गंभीर घायल अथवा पागल हो जाते हैं। इस पर भारी भरकम बजट खर्च होता है जो पैसा विकास और शिक्षा पर खर्च होना चाहिए था। इस प्रकार कुत्तों के काटने की वारदात में वृद्धि हो रही है। उसके लिए नगर निकायों को ठोस कार्य योजना बनाकर सक्रिय होने की आवश्यकता है। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)
– डा. महताब अमरोहवी